SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चाराय देवियाँ सरस्वती स्तोत्र बँधे हुए हैं । दोनों ही संस्कृतमें हैं। उनपर रचयिताका नाम और रचना-काल नहीं दिया है। राजस्थानके जैन शास्त्र भण्डारोंकी चौथी जन्यसूची अनुसार, जयपुरके पाटोडीके ग्रन्थ भण्डारमें लघुकविका सरस्वती स्तवन और कवि बृहस्पतिका सरस्वती स्तोत्र रखा हुआ है । आमेर शास्त्र भण्डारके वेष्टन नं० १७७४ में श्रुतसागरको सरस्वती स्तुति निबद्ध है । तीनों ही की भाषा संस्कृत है । तीनों ही में सरसता और भक्तिका निर्वाह हुआ है । जैन पुरातत्त्वमें देवी सरस्वती મ श्रवणबेलगोलसे एक मील उत्तरकी ओर जिननाथपुर है। इसे होयसल नरेश विष्णुवर्धन के सेनापति गंगराजने शक संवत् १०४० के लगभग बसाया था । यहाँकी शान्तिनाथ बस्ति होयसल शिल्पकारीका बहुत सुन्दर नमूना है। इसकी मुख्य मूर्ति भगवान् शान्तिनाथकी है, जो साढ़े पाँच फ़ुट ऊँची है। इस बस्तिमें नारी चित्रोंकी संख्या ४० है, इनमें सरस्वतीका भी एक चित्र है । सन् १९१६ में, बीकानेर राज्यकी तहसील नोहरके दक्षिण-पश्चिम पल्लू नामक ग्रामकी खुदाईमें डॉ० एल० पी० टेस्सिटोरीको दो जैन सरस्वती प्रतिमाएँ प्राप्त हुई थीं। इनमें से प्रथम राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्लीमें 'PL. 18' पर रखी हुई है। दूसरी बीकानेर में सुरक्षित है। दोनों संगमरमरकी बनी हुई हैं । किन्तु दूसरी पहलीकी नक़ल-सी प्रतीत होती है । पहली प्रतिमाको डाँ० वासुदेवशरण अग्रवालने अपने लेख "भारतीय कला प्रदर्शनी" (हिन्दुस्तान, नव० ७, १९४८) में मध्यकालीन भारतीय शिल्पका एक मनोहर उदाहरण बताया है। मेरी दृष्टिमें यह केवल मध्यकालीन ही नहीं, अपितु समस्त कालोंके भारतीय शिल्पका अप्रतिम नमूना है। यह प्रतिमा सन् १९४८ में लन्दन के रायल एकादमीकी भारत प्रदर्शनी में इंगलैण्ड गयी थी । विश्व के प्रसिद्ध पुरातत्त्वज्ञोंने उसकी रमणीयता और सूक्ष्मता स्वीकार की है । पश्चिम और दक्षिण भारतके जैनोंने भी प्रचुर परिमाण में सरस्वतीको मूर्त रूप दिया या । भद्रावती १ || मील दूर बिजासन गुफाके बरामदे में चार जैन तीर्थंकरोंकी मूर्तियोंके साथ-साथ ही एक सरस्वतीकी प्रतिमा भी अवस्थित है। ये मूर्तियाँ १०वीं से १३वीं शताब्दी मध्यकी हैं। भडगिरिको मल्लिनाथ बस्ती में जैन तीर्थंकरोंके १. राजस्थानके जैन शास्त्रमण्डारोंकी ग्रन्थसूची: द्वितीय भाग, पृ० ५१-५३ । २. जैन शिलालेखसंग्रह प्रथम भाग, भूमिका, पृ० ५० १ ३. सुनि कान्तिसागर, खण्डहरोंका बैभव : पृ० १२८-२९ । २३
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy