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________________ . . .. ... १७६ THISincommam MARATHAMANNARENERANSWER - PHHAT RA जैन-भक्तिकाम्बकी पृष्ठभूमि नं १६९५ दिया हुआ है। एक महदासका बनाया हुआ भी सरस्वतीकल्प है। यदि ये अहंदास पं. अर्हदास ही हैं तो उन्हें पण्डित भाशाधरका समकालीन हो समझना चाहिए, जो वि. सं. १३०० में हुए थे। इस सरस्वतीकल्पकी सूचना अनेकान्त वर्ष १, पृष्ठ ४२८ पर प्रकाशित हो चुकी है । पं० आशाधरका लिखा हुमा सरस्वतीस्तोत्र तो प्रसिद्ध ही है। डॉ. बल्हर के 'Collection of 1873-74' में सरस्वती पूजनकी एक हस्तलिखित प्रति संगृहीत है, जिसका नं. ६८९ है। डॉ० बूल्हरके संग्रह, गवर्नमेण्ट सेण्ट्रल प्रेस बम्बईसे, १८८० में प्रकाशित हो चुके हैं। डॉ० पीटर्सनके 'Collection of 1886-92' में श्री शानभूषणको लिखी हुई 'सरस्वती पूजा-स्तुति' भी निबद्ध है। उसका नं. १४९० है। इसमें संस्कृतके केवल १० श्लोक हैं। मानतुंग सूरिके प्रसिद्ध भक्तामर स्तोत्रकी पादपूर्ति करते हुए, श्री क्षेमकर्मके शिष्य श्री धर्मसिंहने 'सरस्वती भक्तामर स्तोत्र'को रचना की थी। यह स्तोत्र आगमोदय समिति, बम्बईसे १९२७ में प्रकाशित हो चुका है। जिला अहमदाबादके लिमिडी नामके स्थानपर 'लिमिडी भण्डार'में ३५०० हस्तलिखित पुस्तकोंका संग्रह है, जो स्वर्गीय के. पी. मोदीके सतत परिश्रमका फल है। उसमें साधारण अंक १७३४ पर एक सरस्वती षोडशक सुरक्षित है, जिसके रचयिताका नाम नहीं दिया है। ग्रन्थ संस्कृतका है । इसी भण्डारमें अंक १०३१ पर देवी सरस्वतीसे सम्बन्धित एक दूसरी पुस्तक निबद्ध है, उसका नाम सरस्वती स्तवन है। इसके भी रचयिता और सन्-संवत्का कोई पता नहीं है। यह स्तवन डॉ आर. जी. भण्डारकरकी छठी रिपोर्ट अर्थात् 'Collection of 1887-91' में भी संग्रहीत है। ____ मध्यप्रदेश और बरारके संस्कृत तथा प्राकृतके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी सूची रायबहादुर हीरालालने तैयार की थो, जो सन् १९२६ में नागपुरसे प्रकाशित हो चुकी है। उसके पृष्ठ १८१ पर बप्पट्टिका रचा हुआ 'सरस्वती-स्तोत्र' भी दिया है, जिसमें संस्कृतके १३ श्लोक हैं। इसे शारदा-स्तोत्र भी कहते हैं । बप्पभट्टसूरिका सरस्वती-कल्प, जिसमें १२ श्लोक हैं, भैरवपद्मावतीकल्प अहमदाबाद, परिशिष्ट १२, पृष्ठ ६९ पर प्रकाशित हो चुका है। एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगालके हस्तलिखित ग्रन्थोंको छपी हुई सूचीमें अंक ७३६४ पर किन्हीं विद्याविलासके 'सरस्वत्यष्टक' का उल्लेख हुआ है। जयपुरके लुणकरजी पण्डयाके ग्रन्थ-भण्डारमें वेष्टन नं० २३७ और २३८ में क्रमशः दो भिन्न-भिन्न .... एच. डी. बेलकर, श्री जिनरस्नकोश : पृ० ४२० । P AHARIHARANTERN irmiritiimitTI III
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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