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________________ खण्ड] * भगवान् महावीरके बादका जैन-इतिहास * ४७ आर्य श्रीस्थूलभद्र विद्यमान थे, उस समय देशमें एक साथ महाभीषण बारह दुष्काल पड़े। उस समय साधुओंका संघ अपने निर्वाहकेलिये समुद्र के समीवर्ती प्रदेशोंमें चला गया। वहाँ साधु अपने निर्वाहकी पीड़ाके कारण कण्ठस्थ रहे हुए शास्त्रोंको गुन न सके, जिस कारण वे शास्त्रोंको भूलने लगे। जब यह भीषण अकाल मिट गया, तब पाटलीपुत्रमें सारे संघकी एक बड़ी सभा की गई। जिसमें जिस-जिसको जो-जो सूत्र व शास्त्र स्मरण थे, वे इकट्ठ किये गये। उसके अनुसार ग्यारह अङ्गोंका तो अनुसंधान हुआ, पर 'दृष्टिवाद' नामका बारहवाँ अङ्ग तो बिल्कुल विसर्जन हो गया। इनके बाद फिर वीर निर्वाणकी पाँचवीं और छठी शताब्दीमें अर्थात् श्रीस्कन्दिलाचार्य और बज्रबाहु स्वामीके समयमें उसी प्रकारके बारह भीषण दुष्काल इस देशमें फिर पड़े, जिसके कारण साधु अन्नकेलिये भिन्न-भिन्न स्थानोंपर बिखर गये, जिससे श्रतका ग्रहण, मनन और चिन्तन न हो सका । फल यह हुआ कि ज्ञानको बहुत हानि पहुँची । जब प्रकृतिका कोप शान्त हुआ, देशमें सुकाल और शान्तिका प्रार्दुभाव हुआ, तब मथुरामें श्रीस्कन्दिलाचार्यके सभापतित्वमें पुनः साधुओंकी एक महासभा हुई । उसमें जिन-जिनको जो-जो स्मरण था, वह संग्रह किया गया। इस दुष्कालने भी हमारे जैन साहित्यको अधिक धक्का पहुँचाया।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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