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________________ * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * [प्रथम बोध करने वाले चौदह पूर्वधारी श्रोभद्रबाहु स्वामी; चौदहसौ चवासील ग्रन्थोंकी रचना करने वाले हरिभद्रसूरि; पाँचसौ ग्रन्थोंकी रचना करने वाले उमास्वाति वाचक; राजपूतानेमें हजारों क्षत्रियों । को, जो वर्तमान समयमें ओसवाल जातिके नामसे प्रसिद्ध हैं, जैन बनाने वाले रत्नप्रभ सूरि; आमराजाके गुरु होनेका सम्मान प्राप्त करने वाले वप्प भट्टि, महान् चमत्कारिणी विद्याओंके श्रागार यशोभद्र सूरि और कुमारपालके समान राजाको उपदेश देकर अठारह देशोंमें जीव-दयाका एकछत्र राज्य स्थापन करने वाले कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्यके समान महान् प्रतापी जैनाचार्य रूपी रत्नोंको भी इसी भारत वसुन्धराने प्रसव किया था। भगवान् महावीरके निर्वाणके चौंसठ वर्ष बाद तक भारतवर्ष में केवलज्ञानी श्रीजम्बू स्वामी उपस्थित थे। जैन शास्त्रोंमें ऐसा कथन है कि श्रीजम्बू स्वामीके निर्वाणके पश्चात् दस बातोंका विच्छेद-अभाव हो गया । जो इस प्रकार हैं-मनःपर्ययज्ञान, परमावधि, पुलाकलब्धि, आहारकशरीर, क्षायिकसम्यक्त्व, जिनकल्पी, केवलज्ञान, यथाख्यातचारित्र, सूक्ष्मसापरायचारित्र, परिहारविशुद्धिचारित्र। प्रकृतिके भयङ्कर प्रकोपसे हमारे साहित्यको बड़ा भारी नुकसान पहुंचा। श्रीहेमचन्द्राचार्य अपने परशिष्ट पर्वमें लिखते हैं कि भगवान महावीरके निर्वाणके बाद दूसरी शताब्दीमें; जब कि
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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