SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * [प्रथम इन दो भयङ्कर विपत्तियोंको पैदा करके ही प्रकृतिका कोप शान्त नहीं हुआ। उसने और भी अधिक निष्ठुरताके साथ वीर निर्वाणकी दसवीं शताब्दीमें इस जर्जरित देशके ऊपर अपना चक्र चलाया। फिर भयकर दुष्काल पड़ा। इस वार तो कई बहुश्रुतोंका अवसान होनेके साथ-साथ पहिलेके जीर्ण-शीर्ण रहे हुए शास्त्र भी छिन्न-भिन्न हो गये। उस स्थितिको बतलाते हुए 'समाचारिशतक' नामक ग्रन्थमें लिखा है कि वीर सम्बत् १८० में भयङ्कर दुष्कालके कारण बहुतसे साधुओं और बहुश्रुतोंका विच्छेद हो गया। तब श्रीदेवर्धिगणी क्षमाश्रमणने शास्त्र भक्तिसे प्रेरित होकर भावी जन-समाजके उपकारकेलिये सब साधुओं को वल्लभिपुरमें इकट्ठा किया, और उनके मुखसे स्मरण रहे हुए सूत्रों व शास्त्रोंके पाठोंको सङ्गठित कर पुस्तकारूढ़ किया। इस प्रकार सूत्र-ग्रन्थोंके कर्ता श्रीदेवर्धिगणी क्षमाश्रमण कहलाते हैं। अब हम अपने बन्धुआंका ध्यान इस ओर दिलाना चाहते हैं कि जैनधर्मावलम्बियोंकी आपसकी कलह अथवा फूटने किस कदर बड़ा धक्का जैनधर्मको पहुँचाया है। ___ महावीर भगवान्के समयमें कई व्यक्तियोंने अपने मान कषायवश अपनी-अपनी जुदी सम्प्रदायें चलाईं। जैसे-गोशाल आदि ने, पर भगवान्के अतिशय प्रभुतासे वे सारे सम्प्रदाय उन्हीं की मौजूदगीमें समाप्त हो चुके थे। भगवान् महावीरके निर्वाण
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy