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________________ खण्ड] * जैनधर्मानुसार जैनधर्मका संक्षिप्त इतिहास * १६ - - तीसरे आरेके तीसरे हिस्से में जब चौरासी लाख पूर्वसे समय ज्यादा रह जाता है, उस समयसे पदार्थों की कमी होनेके कारण मनुष्य अर्थात् युगलिगे आपसमें झगड़ने लग जाते हैं। इनमें कोई-कोई मनुष्य समझदार होते हैं। वे समझ-बूझकर मामलेको शान्त कर देते हैं । इनको 'कुलकर' कहते हैं। एक कुलकर, जिनका नाम 'विमलवाहनजी' था, उनकी एक हाथीके साथ मित्रता होगई थी, वे उसपर चढ़कर भ्रमण किया करते थे और वह मनुष्योंके झगड़े तय करा दिये करते थे। उनकी सातवीं पीढ़ीमें 'श्रीनाम कुलकर हुए। उनकी स्त्रीका नाम 'श्रीमरुदेवीजी' था। श्रीमरुदेवीजीने एक श्रेष्ठ और अति उत्तम पुत्रको जन्म दिया, जिनका नाम 'श्रीऋषभदेवजी' रक्खा गया। जब ये बड़े हुए, तब इनके पिताने इनकी शादी दो सुन्दर कन्याओं के साथ की। एकका नाम 'सुमङ्गला' था, दूसरीका 'सुनन्दा' । श्रीसुमङ्गलाजीने एक पुत्र, जिनका नाम 'भरत' और कन्या जिनका नाम 'ब्राह्मी' था, जन्मा। दूसरी श्रीसुनन्दाजीने भी एक पुत्र को, जिनका नाम 'बाहुबलिजी' और कन्या जिनका नाम 'सुन्दरी' था, जन्म दिया। श्रीऋषभदेवने जनताको अनाज बोना, बर्तन बनाना, खाना पकाना, मकान बनाना, वस्त्र बनाना, और और-और जरूरी हुनर व दस्तकारीकी शिक्षा दी। इस तरह सब प्रकारके सुधारोंका प्रारम्भ श्रीऋषभदेवजी ने किया । अतः वह मानव जातिके सर्व प्रथम सुधारक माने
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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