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________________ * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * [ प्रथम पहली पसर्पिणीके छह आरोंका संक्षेपमें वर्णन इस प्रकार है: १८ पहला आरा - इसका नाम सुषमा सुषमा आरा है । इसमें जो प्राणी उत्पन्न होते हैं, उनको किसी प्रकारका दुःख नहीं होता अर्थात् उन्हें सुख में सुख मिलते हैं। जिस वस्तुकी वे इच्छा करते हैं, फ़ौरन उन्हें कल्पवृक्षसे प्राप्त हो जाती है और किसी प्रकारकी तकलीफ़ पास तक नहीं आती । इसका समय-प्रमाण चार कोड़ाक्रोड़ सागरका होता है । इस समय के मनुष्यों को शास्त्रकारों ने 'युगलिये' कहा है। कारण, जन्म लेते समय दो प्राणीस्त्री-पुरुष उत्पन्न होते हैं । दूसरा आरा - इसका नाम सुषमा श्रारा है । इसमें पहले आरेसे सुख कम हो जाते हैं, पर दुःख किसी प्रकारका नहीं होता। इस समय भी इच्छानुसार कल्पवृक्षसे वस्तुओं की प्राप्ति हो जाती है, पर पहले आरेके मुकाबिले मनुष्योंकी अवगाहना ( क़द ) वा उम्र कुछ कम हो जाती है, सुन्दरता संगठनमें भी कुछ कमी हो जाती है और पदार्थोंकी ताकृत व गुणोंमें भी कुछ कमी हो जाती है । इसका समय-प्रमाण तीन क्रोड़ाक्रोड़ी सागरोपमका होता है। इस समय में भी युगलिये अर्थात् स्त्रीपुरुषका जोड़ा उत्पन्न होता है । तीसरा आरा - इसका नाम सुषमा-दुष्षमा श्रारा है । इसके पहिले दो भाग में दूसरे आरके समान स्थिति रहती है । पर
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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