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________________ * जैनधर्मानुसार जैनधर्मका संक्षिप्त इतिहास * १७ अर्थात् भरत-क्षेत्रमें होते हैं, इस प्रकार नरक-स्वर्गादिमें नहीं होते। इसलिये समयका प्रमाण भरत-क्षेत्रसे लिया गया है । वह निम्न प्रकार है। आँखके एक दम मिचने अथवा टमकने में असंत्यात समय बीत जाते हैं। ऐसे असंख्यात समयकी १ आवलिका। ३७७३ श्रावलिकाका १ श्वासोच्छास ३७७३ नीरोगी मनुष्यके श्वासोलासका १ मुहूर्त अर्थात् ४८ मिनट ३० मुहूर्त्तका १ दिन रात १५ दिन-रातका १ पक्ष २ पक्षका १ महीना २ महीनेकी १ ऋतु ३ ऋतुका १ अयन २ अयनका १ वर्ष ५ वर्षका १ युग १ कुत्रा खाली होनेके समयका १ पल्योपम* १० क्रोडाकोड़ कुए खाली हों उतने वर्षों का १ सागरोपम * पल्योपमका विस्तार इस प्रकार है: एक योजनके लम्बे चौड़े गोंड़े कुएमें देव-कुरु उत्तरकुरु क्षेत्रके मनुष्यके एक दिनसे ७ दिन तकके बच्चेके वालाग्रके एकके दो विभाग तीक्ष्ण शस्त्रसे भी न होवे, ऐसे बारीक कर उक्त कुर्ये को हँस ढूंसकर ऐसा भरे कि उसपरसे चक्रवर्तीकी सेना भी चली जाय तो वह दबे नहीं । फिर उस कुयेंमेंसे सौ-सौ वर्षके बाद १-१ वालाग्र निकालते-निकालते वह कुत्रा जब साफ खाली हो जावेउसमें एक भी वालाग्र न रहे-उतने वर्षको एक पल्योपम कहते हैं।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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