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________________ २६२ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * [तृतीय जल न मिले तो प्रसन्नचितसे निर्जल और निराहार रह जाते हैं। गर्मीमें पंखा नहीं करते हैं। ठंड में आँचसे नहीं तापते हैं या मर्यादा के बाहर वन, जैसे-सौर या कम्बल नहीं रखते हैं। डंसमच्छरकी परीषह सहन करते हैं। यदि ठहरनको स्थान नहीं मिलता है तो वृक्षके नीचे ठहर जाते हैं। यदि कोई बुरा-भला या गाली आदि दे या कोई दुष्ट जन वार भी करे तो शान्तिपूर्वक सहन कर लेते हैं । इस प्रकार नाना प्रकारकं परीषह वे सहन करते हैं। ८-बयालीस दोष टालके आहार ग्रहण करते हैं । जैसेअमिपर कोई वस्तु होगी तो उसे नहीं ग्रहण करेंगे। कई पानी, या सब्जीसे स्पर्श होगा तो नहीं ग्रहण करेंगे। यदि स्त्री पञ्च को दृध पिला रही हो तो उससे श्राहार नहीं लेंगे। यदि कोई वस्तु किवाड़ोंके अन्दर या ताले में रक्खी हो तो उसे नहीं लेंगे। दीनतासे दान नहीं माँगेंगे। इसी प्रकार बहुतसे अनेक दोष टालकर पाहार ग्रहण करते हैं। ___ -जैसी जिस मुनिकी शक्ति हो. उसके अनुसार तपस्या. नियम, अविग्रह, आतापना आदि करते हैं। कोई एक दिन, कोई दो दिन, यहाँ तक कि सात दिन, पन्द्रह दिन, महीना, दो महीना, चार महीने तककी तपस्या करते हैं। तरह-तरह के नियम व अविग्रह करते हैं और सूर्यको गर्मी और रात्रिकी ठंडको सहन करने की तपस्या करते हैं । कोई-कोई केवल छाछपर ही रहते हैं। इस प्रकार नाना प्रकारकी तपस्या व त्याग करते हैं।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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