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________________ ख) * मनुष्य-जीवनकी सफलता - २६३ १०-राग-द्वेष नहीं करते । क्रोध, मान, माया और लोम नहीं करते । निन्दा नहीं करते। रति-अरति नहीं करते । मिथ्या दर्शन शल्य नहीं रखते। अनुराग नहीं करते । प्राणी मात्रको अपनी श्रात्माके तुल्य समझते हैं। सदा शान्ति भाव रखते हैं। ११-यदि जानकारीमें या अज्ञानतासे कोई दोष लग जाता है तो गुरु महाराजकी सेवा में तत्काल निवेदन करते हैं और जो वे प्रायश्चित्त देते हैं, उसे सहर्ष स्वीकार करते हैं। ज्ञानका काफी अभ्यास करते हैं। ज्ञानाचार, दर्शनाचार. चारित्राचार, तपाचार, वीर्याचारमें सदा प्रवृत्त रहते हैं। सदा वैराग्य सहित रहते हैं। अपनी आत्मा और दूसरों की आत्माका भी कल्याण करते हैं। सदा बात ध्यान और गैद्र ध्यानका त्याग करते हैं और मदा धर्म ध्यान रखते हैं। १२-साधुको दिनचय्यां इस भाँति है: मुनि रात्रिका एक पहर जब बाकी रहे तब उटे और उस समय स्वाध्याय या रात्रिका प्रतिक्रमण करे, इसके बाद दिनके पहिले पहरमें प्रतिलेखना तथा स्वाध्याय करे, दिनके दूसरे पहरमें एक पहर तक ध्यान करे, तीसरे पहरमें मधुकरी वृत्तिसे भिक्षा-आहार आदि करे, चौथे पहरमें पढ़े तथा प्रतिलेखन करे और सायंकालमें दिनका आवश्यक प्रतिक्रमण करे, रात्रिके पहले पहरमें स्वाध्याय करे और दूसरा पहर निर्मल ध्यानमें बिताये, इस प्रकार मध्य रात्रि बीत जानेपर एक पहर निद्रा ले।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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