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________________ २२४ * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * तृतीय अर्थात मनुष्योंका मन ही बन्धका कारण है और मन ही मोक्षका कारण है। इस कारण सुज्ञ जनोंको रस्सीसे बँधे हुए बैलकी तरह मनको अवश्य वशमें रखना चाहिये । (३६) जिस प्रकार पुष्पमें सुगन्ध, दूध में घी, तिलमें तेल और कायमें आत्मा स्थिर रहती है, उसी प्रकार अात्मामें ज्ञान रहता है। वह उद्यम व उपाय करनेसे प्रकट हो सकता है । आवश्यकता है पुरुषार्थ करनेकी। (४०) शास्त्रकारोंने कहा है कि पवित्रतामें परम पवित्र शील है, गुणोंमें परम गुण शील है और तीनों लोकों में प्रभाव तथा महिमाका धाम यदि कोई वस्तु है तो वह केवल शील है। अश्वका उत्तम भूषण वेग है, स्त्रीका उत्तम भूपण पति है, तपस्वीका उत्तम भूषण कृशता है, ब्राह्मणका उत्तम भूपण विद्या है और मुनिका उत्तम भूषण क्षमा है, किन्तु शील तो सभी प्राणियोंका उत्तम भूषण है। इसलिये ब्रह्मचर्यका पालन सभीको अवश्य करना चाहिये। ब्रह्मचर्य पालन करनेकेलिय उसकी निम्नलिखित नौ वाढ़े अवश्य पालन करना चाहिये: १--जिस स्थानमें स्त्री रहती हो या जिस स्थानके पास स्त्रीका वास हो, उस उपाश्रयका मुनिको त्याग करना चाहिये । २-स्त्रीसे एकान्तमें या बिना प्रयोजन बात नहीं करनी चाहिये।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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