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________________ खण्ड ] * मुमुक्षुओंके लिये उपयोगी उपदेश * २२५ ३ – जिस आसनपर स्त्री बैठी हो या सोई हो उस श्रासनका दो घड़ी के लिये त्याग करना चाहिये । ४ – स्त्रियों के श्रङ्गोपाङ्गोंको ध्यानपूर्वक न देखना चाहिये । इसके अलावा स्त्रीके स्वरूपको ध्यान तकमें न लाना चाहिये । ५ - जिस घर में स्त्री-पुरुष सोते हों या जिस जगहसे हावभाव-विलास हास्यादिकी आवाज सुनाई देती हो, वहाँ दोबारका अन्तर न होनेपर ब्रह्मचारीको नहीं रहना चाहिये । ६ - पूर्व काल में स्त्रीके साथ जो क्रीड़ा आदि की हो, उसका स्मरणमात्र भी नहीं करना चाहिये । ७- अत्यन्त स्निग्ध आहार - जिस पदार्थ के सेवन से कामीद्दीपन होने की सम्भावना हो, का त्याग करना चाहिये । - ज्यादा आहार न करना चाहिये । ६-- आभूषण, सुन्दर वस्त्र, स्नान, मञ्जन और अङ्ग- शोभा आदिका भी ब्रह्मचारीको त्याग करना चाहिये । जो व्यक्ति इन नौ मर्यादाओंका ध्यानपूर्वक पालन करेगा, वही ब्रह्मचर्यको पाल सकता है। गृहस्थ में पुरुषको स्वदार - सन्तोष व्रत और स्त्रीको स्वपुरुषसन्तोष व्रत धारण करना चाहिये। जो लोग विषयाकुल हों, मनसे भी शीलका खण्डन करते हों, वे 'मणिरथ' राजाकी तरह घोर नरक
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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