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________________ खण्ड * नवतत्त्व अधिकार १६७ ROORananatanaaunee २-जीव दो प्रकारके होते हैं। एक तो वे जीव हैं जो कर्मसहित हैं-कर्मके वशीभूत हैं; नाना प्रकारके जन्म-मरण करते हुए संसारमें संसरण-भ्रमण करते रहते हैं, इसलिये उनको 'संसारी जीव' कहते हैं। दूसरे वे हैं जो समस्त कर्मोको क्षयकर अर्थात् काटकर मुक्त हो गये हैं, उन्हें 'मुक्त जीव' अथवा 'सिद्ध जीव' कहते हैं। __३--मोक्ष प्राप्त हुये जीव सब एक प्रकारके होते हैं, परन्तु संसारी जीव अनेक प्रकारके होते हैं। इस कारण केवल संसारी जीवोंके ही भेद बताये जाते हैं : १--सूक्ष्म एकेन्द्रिय, २-बादर एकेन्द्रिय, ३--द्वीन्द्रिय, ४-त्रीन्द्रिय, ५--चतुरिन्द्रिय, ६-असैनी (असंज्ञी) पञ्चेन्द्रिय और ७-सैनी (संज्ञी) पञ्चेन्द्रिय । ___ संसारमें पञ्चेन्द्रिय जीव दो प्रकारके होते हैं। एक तो वे जिनके मन नहीं होता, उन्हें 'असैनी' कहते हैं। ये जीव मातापिताके संयोगके बिना ही पैदा होते हैं अर्थात् पानी, पृथ्वी, वायु आदिके संयोग-विशेषसे पैदा होते हैं। दूसरे वे जो माताकी रज और पिताके वीर्य के संसर्गसे पैदा होते हैं। इनके मन होता है। इसलिये ये 'सैनी' (संज्ञी) कहलाते हैं। १-सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव इतने सूक्ष्म होते हैं कि वे किसी यन्त्र द्वारा भी नहीं देखे जा सकते । इस प्रकारके पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पतिके अनन्तानन्त-जीव समस्त लोकमें
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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