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________________ १६८ * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * द्वितीय भरे हुये हैं। ये केवल ज्ञान द्वारा ही अवलोकन किए जा सकते हैं। ___-बादर एकेन्द्रिय जीव भी नेत्रोंद्वारा कठिनतासे दीख पड़ते हैं, पर यन्त्रद्वारा आसानीसे दीख जाते हैं। इस प्रकारके पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और वनस्पतिके अतन्तानन्त जीव हैं । सूक्ष्म और बादर जीवोंके केवल स्पर्श इन्द्रिय ही होती है। अर्थात् केवल शरीर ही होता है । ३-द्वीन्द्रिय-जीव वे होते हैं, जिनके केवल दो ही इन्द्रियाँ होती हैं। एक स्पर्श और दूसरी रसना अर्थात् जिह्वा । जैसेकेचुआ, लट श्रादि। ४-त्रीन्द्रिय-जीव वे होते हैं, जिनके केवल तीन इन्द्रियाँ होती हैं। एक स्पर्श, दूसरी रसना और तीसरी ब्राण अर्थात् नासिका । जैसे-चींटी, खटमल आदि । ५-चतुरिन्द्रिय-जीव वे होते हैं, जिनके केवल चार ही इन्द्रियाँ होती हैं। एक स्पर्श, दूसरी रसना, तीसरी घ्राण और चौथी नेत्र । जैसे-मकड़ी, भौंरा आदि। ६-असैनी पञ्चेन्द्रिय-जीव वे होते हैं, जिनके पाँच इन्द्रियाँ होती हैं। एक स्पर्श, दूसरी रसना, तीसरी घ्राण, चौथी नेत्र और पाँचवीं श्रोत्र अर्थात् कान। इन जीवोंके मन नहीं होता है। जैसे-मेंढक आदि।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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