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________________ १६६ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * [द्वितीय - - मेघोंको उड़ानेकेलिये पवनके समान है और समस्त तत्त्वोंको प्रकाशित करनेकेलिये दीपकके समान है। ___ ज्ञानके बिना मुमुक्षु मनुष्य किस प्रकार मोक्षको प्राप्त कर सकते हैं ? इस कारण ज्ञानी पुरुषोंने मोक्षकी इच्छा रखनेवालोंके लिये नवतत्त्वरूपी ज्ञान फरमाया है, जो निम्न प्रकार है: १--जीव, २-अजीव, ३-पुण्य, ४-पाप, ५-पासव, ६-बन्ध, ७-संवर, ८-निर्जरा और :--मोक्ष । जीव जीव सदासे है और सदा रहेगा। इसको न कभी किसीने बनाया और न कभी इसका नाश होगा । सदा काल यह जीवितजिन्दा रहता है। इसी कारण यह 'जीव' कहलाता है। जो सुखदुःखको भोगता है-अनुभव करता है, उसे 'जीव' कहते हैं ! जीवका लक्षण चेतना है, जो सदा इसके साथ रहती है। जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश बादलों से ढका रहता है, उसी प्रकार इस जीवका ज्ञान-दर्शन-गुण ज्ञानावरणीय प्रादि कर्म-पुद्गलोंसे ढका रहता है। ___ संसारमें जीव अनन्तानन्त हैं-बेशुमार हैं। लेकिन फिर भी सर्वज्ञाज्ञानुसार शास्त्रकारोंने उनका अनेक रूपसे वर्गीकरण किया है। यथा-- १--संसारके समस्त जीवोंमें चैतन्य होनेसे वे सब एक प्रकारके हैं।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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