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________________ १४२ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * [द्वितीय इसके अतिरिक्त दूसरे प्रकारके कर्म वे जिन्हें निःकाक्षित कर्म कहते हैं । वे ऐसे होते हैं जिनका फल आत्माको भोगना ही पड़ता है; वे तपस्या वगैरहसे निवृत्त नहीं हो सकते। ___ कुछ लड्डुओंका परिमाण दो तोलेका, कुछ लड्डुओंका छटॉकका और कुछ लड्डुओंका परिमाण पावभरका होता है । उसी प्रकार कुछ कर्म-दलोंमें परमाणुओं की संख्या अधिक और कुछ कर्म-दलोंमें कम; इस तरह भिन्न-भिन्न प्रकारकी परमाणुसंख्याओंसे युक्त कर्म-दलोंका आत्मासे सम्बन्ध होना 'प्रदेशबन्ध' कहलाता है। संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त परमाणुओंसे बने हुए स्कन्धको जीव ग्रहण नहीं करता, किन्तु अनन्तानन्त परमाणुओंसे बने हुए स्कन्धों को ग्रहण करता है। निम्नलिखित कर्म करनेसे अमुक कर्मका बन्ध होता है:१-ज्ञानावरणीयकर्म-बन्धके कारण:मुनि, साधु अथवा ज्ञानियोंकी असातना करना-अपने गुरु श्रादि महान् पुरुषोंका उपकार न मानना-पुस्तकों व शास्त्रोंका अपमान तथा नाश करना-विद्यार्थियोंके विद्याभ्यास में विघ्न पहुँचाना अथवा बाधा गेरना-मुनिओं, साधुओं अथवा उच्च अात्माओंको कष्ट पहुँचाना; इत्यादि । २-दर्शनावरणीयकर्म-बन्धके कारण:___ जो कुदेव, कुगुरु और कुधर्मकी प्रशंसा करे-धर्म-निमित्त . हिंसा करे-अन्यायका पक्षपाती हो-कुशास्त्रकी प्रशंसा करे और
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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