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________________ १३६ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * [द्वितीय - इनके अलावा इस कमकी २८ प्रकृतियाँ और भी हैं । वे इस प्रकार हैं: परघातनाम कर्म, उच्छासनाम कर्म, आतापनाम कर्म, उद्योतनाम कर्म, अगुरुलघुनाम कर्म, तीर्थकरनाम कर्म, निर्माणनाम कर्म, उपघातनाम कर्म, सदशककी जितनी प्रकृतियाँ हैं, उनकी विरोधनी स्थावर-दशककी दस प्रकृतियाँ हैं। उनके नाम इस भाँति हैं:-सनाम, बादरनाम, पर्याप्तनाम, प्रत्येकनाम, स्थिरनाम, शुभनाम, सुभगनाम, सुस्वरनाम, श्रादेयनाम और यशःकीर्तिनाम; स्थावरनाम, सूक्ष्मनाम, अपर्याप्तनाम, साधारणनाम, अस्थिरनाम; अशुभनाम, दुर्भगनाम, दुःस्वरनाम, अनादेयनाम, अयशःकीर्तिनाम इस प्रकार नामकी १०३ प्रकृतियाँ होती हैं । छ-गोत्र कर्म। यह कर्म कुंभारके सदृश है। कुंभार अनेक प्रकारके घड़े बर्तन आदि बनाता है । जिनमेंसे कुछ तो ऐसे होते हैं जिनको लोग कलश बनाकर अक्षत चन्दनसे पूजते हैं और कुछ घड़े ऐसे होते हैं जो मद्य रखनेके काममें आते हैं । अतएव वे निन्द्य समझे जाते हैं। इसी प्रकार यह गोत्र कर्म है। जिसके उदयसे जीव नीच अथवा ऊँच कुलमें जन्म लेते हैं। ____ इस कर्मके दो भेद होते हैं। वे निम्न प्रकार हैं:-१-उच्चगोत्र और २-नीचगोत्र ।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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