SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड ] * कर्म अधिकार # १३७ १ - जिस कर्म के उदयसे जीव उत्तम कुल में जन्म लेता है, उसे 'उच्चगोत्र कर्म' कहते हैं । २ - जिस कर्मके उदयसे जीव नीच कुलमें जन्म लेता है, उसे 'नीचगोत्र कर्म' कहते हैं । यहाँ प्रश्न यह उठता है कि उच्च और नीच कुल किसको कहना चाहिये । कुल जो धर्म और नीति की रक्षा से सम्बन्ध रखता है, वह. 'उच्चकुल' है । जो कुल अधर्म और अनीति से सम्बन्ध रखता है,. वह 'नीचकुल' है । ज - अन्तराय कर्म । इसका दूसरा नाम विघ्न कर्म है। इसके पाँच भेद हैं। जिस कर्मके उदयसे जीव धन, भोग, उपभोगका सामान होते हुए भी उन्हें नहीं भोग सकता है अर्थात् फायदा नहीं उठा सकता है; जैसे किसी व्यापार में लाभ होते-होते नहीं होता है, शक्ति होते हुए किसी कार्यको नहीं कर सकता है; इस प्रकार के कर्मको 'अन्तराय कर्म' कहते हैं । इसके पाँच भेद होते हैं: - दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय और वीर्यान्तराय । १ - जिसके उदयसे दानकी चीजें मौजूद हों, गुणवान्. पात्र आया हो, दानका फल भी जानता हो तो भी दान करनेका उत्साह नहीं होता, उसे 'दानान्तराय कर्म' कहते हैं। यह दानीके वास्ते है ।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy