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________________ खण्ड * कर्म अधिकार * १३५ - - कृष्णवर्ण नाम, नीलवर्ण नाम, लोहितवर्ण नाम, हरिद्रवर्ण नाम और श्वेतवर्णनाम कम। १०-जिस कर्मके उदयसे शरीरमें अच्छी या बुरी गन्ध हो, उसे 'गन्धनाम कर्म' कहते हैं। इसके दो भेद होते हैं:-सुरभिगन्ध नाम और दुरभिगन्धनाम कर्म । __ ५१-जिस कर्मके उदयसे शरीरमें खट्टा-मीठा आदि रसोंकी उत्पत्ति होती है, उसे 'रसनाम कर्म' कहते हैं। इसके पाँच भेद होते हैं:-तिक्तरस, कटुरस, कषायरस, अम्लरस और मधुररस नाम कर्म । १२-जिस कर्मके उदयसे शरीरमें कोमल, रूक्ष आदि स्पर्श हो, उसे 'स्पर्शनाम कर्म' कहते हैं इसके पाठ भेद होते हैं:ककशस्पर्श, मृदुस्पर्श, गुरुस्पर्श, लघुस्पर्श, शीतस्पर्श, उष्णस्पर्श, स्निग्घस्पर्श और रूक्षस्पर्श नाम कम । __१३-जिस कर्मके उदयसे जीव विग्रहगतिमें अपने उत्पत्ति स्थानपर पहुँचता है, उसे 'अानुपूर्वीनाम कर्म' कहते हैं। इसके चार भेद होते हैं:- नरकानुपूर्वी, तिर्यश्चानुपूर्वी, मनुष्यानुपूर्वी और देवानुपूर्वी नाम कर्म । १४-जिस कर्म के उदयसे जीवकी चाल (चलना) शुभ अथवा अशुभ होती है, उसे 'विहायोगति नामकर्म' कहते हैं । इसके दो भेद होते हैं:-शुभविहायोगति और अशुभ विहायोगति नाम कर्म।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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