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________________ * द्रव्य-पर्याय अधिकार * Sanam . ..........ranAAAAAAADIAADILLIALA - १-संसारमें जितना पुद्गल है अर्थात् Matter है वह न कभी बढ़ता है और न कभी घटता है। वह किसी न किसी रूपमें संसारमें ही रहता है और इतना ही रहता है। शास्त्रकारोंने पुद्गलको मुख्य चार भागोंमें विभाजित किया है । वह इस प्रकार है:(१) वर्ण-रंग, (२) रस, (३) गन्ध और (४) स्पर्श । (१) वर्ण यानी रंगके पाँच प्रकारके पुद्गल होते हैं: ___ कृष्ण, नील, रक्त, पीत और श्वेत । (२) रसके पाँच प्रकारके पुद्गल होते हैं: खट्टा, मीठा, कडुवा, कषायला और चिरपरा । . (३) गन्धके दो प्रकारके पुद्गल होते हैं: ___ मुगन्ध और दुर्गन्ध । (४) स्पर्शके आठ प्रकारके पुद्गल होते हैं: कोमल, कठोर, हलका, भारी, शीत, उष्ण, चिकना और रूखा। २-धर्मास्तिकाय वह अरूपी ताक़त (Eorce) है, जो जीवको चलने फिरनेमें मदद देती है। जैसे-पानी मछलीको तैरने में सहायक होता है। ३-अधर्मास्तिकाय वह अरूपी ताकत (Ic.ree) है, जो चलते हुए जीवको रुक जानेपर रोकती है। जैसे-गरमी व धूपमें
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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