SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्रव्य-पर्याय अधिकार न वस्तुयें अनादि कालसे चली आती हैं, जिनकी न कभी 3 उत्पत्ति हुई, न कभी जिनका नाश हुआ और न होगा, उनको "द्रव्य” कहते हैं । ये अनादिकालसे अकृत्रिम और अनेक हैं। कोई भी नवीन द्रव्य, जिसका कि पहिलं अस्तित्व न था, कभी अस्तित्वमें नहीं आ सकता। जो वस्तु, गुण और पर्यायसे युक्त होती है, उसे द्रव्य कहते हैं । द्रव्य कभी नाश नहीं होता पर उसकी पर्याय ( हालत) परिवर्तन होती रहती है। जैनशास्त्रों में मुख्य द्रव्य दो प्रकारके बतलाय हैं:१-चेतन-जीव-आत्मा। २-जड़-अजीव-पुद्गल । १-जीव द्रव्यका हम आगे अलग अधिकारमें वणन करेंगे। २-अजीव द्रव्य मुख्य पाँच प्रकारक हैं, जो निम्न प्रकार हैं: (१) पुद्गल (Matter ), (२) धर्मास्तिकाय (Modium of Motion), (३) अधर्मास्तिकाय ( Medium of rest ), (४) काल (Time) और (५) आकाश (Shace)। इन पाँचोंमें सिर्फ पुद्गल मूर्तीक है और शेष अमूर्तीक हैं।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy