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________________ ( २ ) और परिशीलन किया है, उसके दिलपर इस पुस्तकको पढ़कर ऐसी छाप अवश्य पड़ेगी कि इसमें जैन-परम्परा और शास्त्रकी बातें-वस्तुएँ तो बेहद हैं, पर उनकी योग्य व्यवस्था, उनकी पूर्णता और उनका स्वतन्त्रभावसे परीक्षण इस पुस्तकमें नहीं है। इस पुस्तकको पढ़ते समय मुझको भी यह प्रश्न हुश्रा । पर जब मेरी दृष्टि एक सत्यकी ओर गई, तब उसका समाधान ठीक-ठीक होकर पुस्तकके गुण-दोष जाननेकी कसौटी मिल गई। मुझे मालूम हुआ कि इसके लेखक न तो प्रोफेसर हैं, न किसी शास्त्रके पण्डित, वे न तो लॉजिशियन (Lungician: ) होनेका दावा करते हैं, और न साइन्टिस्ट { Scientist ; ही होनेका। पुस्तकके लेखक सेठ अचलसिंहजी कॉलिजमें तो पढ़ने गए ही नहीं, उन्होंने संस्कृत-प्राकृत बिल्कुल पढ़ी ही नहीं। वे छोटी उम्रसे कुश्तीबाज रहे और कुलपरम्परासे रहे व्यापारी। इस प्रकारकी परिस्थिति में पलने और जीवन बितानेपर भी उनका रस धार्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय विषयों की ओर छोटी उम्रसे ही था। जिसका मैं खुद चिरकालसे साक्षी रहा हूँ। वे व्यापार-धन्धा करते समय और अखाड़ेमें दंगलबाजी करते समय भी थोड़ा-बहुत अवकाश निकालकर उसमें अपना प्रिय साहित्य पढ़ा करते थे और मित्र-मण्डलीमें तथा सभा-सोसाय. टित्रों में सम्मिलित होकर चर्चा भी किया करते थे। इस जिज्ञासा बीजकी पुष्टि के साथ-साथ उनमें सक्रिय विचारके बीज पुष्ट होते थे। वे सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रोंमें स्थानिक रूपसे भाग
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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