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________________ [ ११ ] है । अस्तु । वीर-शासनभेद का ही यह परिणाम है कि आज कोई विद्वान सर्वज्ञ को समस्त पदार्थों का ज्ञाता नहीं बताते हैं । सर्वज्ञ की व्याख्या वे निराली हो करते हैं, इस प्रकरण पर यहां पर हम कुछ भी प्रकाश डालना नहीं चाहते हैं, वह एक विषयान्तर, एक स्वतन्त्र विस्तृतलेख का विषय है । परन्तु सर्वज्ञ लक्षण - प्रतिपादक समस्त शास्त्रों से विरुद्ध यह भी एक सैद्धान्तिक विचित्र खोज का नमूना है । प्रो० ० मा० की, फू कसे पहाड़ उड़ानेकी विफल चेष्टा प्रो० हीरालाल जी ने जो अपने स्वतन्त्र मन्तव्य प्रगट किये हैं । वे भी उसी प्रकार की ऐतिहासिक, सैद्धान्कि खोज एवं शासनभेदकी-सामयिक लहर के ही परिणामस्वरूप हैं । उन के मन्तव्यों का हमने अपने इस ट्रैक्ट में विस्तृत रूपसे सहेतुक, सयुक्तिक एवं सप्रमाण प्रतिवाद किया है। यद्यपि हमारी यह इच्छा थी कि वे अपने मन्तव्यों का समक्ष में बैठकर ही विचार कर लेवें क्योंकि लेख- प्रतिलेख में लंबा समय लगने के साथ साधारण जनता उलझन में पड़ जाती है । इसी लिये हमने श्री० कुंथलगिरि सिद्धक्षेत्र पर जगद्वन्ध, चारित्रचक्रवर्ती, परम पूज्य श्री १०८ आचार्य शिरोमणि शांतिसागर जी महाराज की नायकता में इन विषयों पर विचार करने की अनुमति प्रो० सा० को दी थी। हमने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि समक्ष में विचार बहुत शान्ति के साथ होगा, और श्री आचार्य चरण सान्निध्य शान्ति और विचार में पूर्ण सहायक
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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