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________________ [ १२ ] होगा । यह विषय समाचार पत्रों में श्रा चुका है । अस्तु 1 प्रो० सा० ने सिद्धांत शास्त्रों का सम्पादन किया है हम समझते थे कि उनका शास्त्रीय एवं तात्विक बोध अच्छा होगा । परन्तु उनके वक्तव्यों को पढ़कर हमें निराशा हुई । उनकी लेखनी में भी हमें विचार एवं गम्भीरता का दिग्दर्शन नहीं हुआ । विद्वानों को जहां एक साधारण बात भी विचारपूर्वक प्रगट करना चाहिये, वहां मूल सिद्धान्तों के परिवर्तनकी बात तो बहुत विचार, मनन, खोज एवं श्रमाणों की यथार्थता की पूर्ण जानकारी प्राप्त करके ही प्रगट करनी चाहिये । परन्तु खेदके साथ लिखना पड़ता है कि भगवत्कुन्दकुन्दाचार्य, आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती. आचार्य अकलंक देव, श्राचार्य पूज्यपाद जैसे दि० जैन धर्म के सूर्य-सदृश प्रकाशक महान महान आचार्यों को भी प्रो० सा० ने कर्म सिद्धांत एवं गुणस्थान- चर्चा के अजानकार तथा श्रमान्य सहसा ठहरा दिया है। इसी प्रकार धवल सिद्धान्त आदि शास्त्रों के प्रमाणों को भी विपरीत रूप में प्रगट किया है। उन्होंने यह नहीं सोचा कि इतनी बड़ी बात बिना किसी आधार और विचार के प्रसिद्ध करने से समाज में उसका क्या मूल्य होगा ? स्त्री-मुक्ति, सवत्र मुक्ति और केवली के क्षुधादि की वेदना अथवा कवलाहार को सिद्ध करने का प्रयास प्रो० सा० का इसी उद्देश्य से किया गया प्रतीत होता है कि वे श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदायों में एकीकरण करना चाहते हैं और
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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