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________________ महावीर और ज्योतिष द्वादश ग्रह- व्यय स्थान में धनराशि होने से तथा स्वामी वहस्पति उच्च का होने से इस जातक द्वारा धार्मिक, परोपकारी एवं मांगलिक कार्यों में ही रुचि के योग हैं। रोग- आयु के मध्यम काल में अतिसार या रक्त पित्त से रोग संभव है। (गोशालाक का तेजोलश्या इन पर छेड़ने से रक्त-पित्त अतिसार रोग)। निर्वाण- जब शनि की महादशा में वृहस्पति का अन्तर हो और आयु ७२ वर्ष में चल रही हो तब मारकेश लगता है (निर्वाण होगा) जिस दिन महावीर स्वामी ने निर्वाण लाभ किया, उस दिन कार्तिक की अमावस्या की रात में स्वाति नक्षत्र चल रहा था आपके जीवन का ७२ वर्ष गजर रहा था। यह पावापुरी की भूमि थी ४७० वि. पू. (५२७ ई. प.) में पृथ्वी की ज्वाज्वल्यमान ज्योति, ब्रह्मांड की परमज्योति का एक अभिन्न अंश बन गयी इस प्रकार सन्मति महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए। द्वादश गृहों के अनुसार प्रभ महावीर के जीवन की मुख्य घटनाएं १. प्रथम गृह- में भगवान महावीर का गर्भ-परावर्तन हआ। २.तृतीयं गृह- भगवान महावीर का एक बड़ा भाई नन्दीवर्धन तथा एक बड़ी बहन सुदर्शना थे। पंचम पृह- विरक्त अवस्था का प्रारंभ, पुत्री प्रियदर्शना थी। सप्तम गृह- यशोदा पत्नी थी इस से पुत्री प्रियदर्शना का जन्म हुआ। पाश्चात पत्नी त्याग का अवसर भी शीघ्र आ गया। ५. नवम गृह- धार्मिक परम्परा में विकृतियों का खुलकर विरोध। नदीतीर पर केवलज्ञानोत्पत्ति। ६. एकादश गृह- वर्षीदान में धन का उपयोग ७. रोग- गोशालक ने इन पर तेजोलेशिया छोड़ी- परिणाम स्वरूप रक्त-पित्त अतिसार रोग का होना।।
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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