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________________ क्षत्रियकुंड ३३ सप्तम गृह- राहु और बृहस्पति कर्क राशि में स्थित है इसलिये इनका परिणय- वय किशोरकाल ठहरता है। (यशोदा पत्नी) । इस इन्द्रिय निग्रही जातक के सातवें घर में राहु की स्थिति है तथा शनि की पूर्ण दृष्टि है इसलिये पत्नी त्याग का अवसर भी शीघ्र ही होकर यौवनावस्था में ज्ञान उपस्थित होता है। उच्च राशि का बृहस्पति तथा राहु की युति होने से जातक तमोगुणनाशक, शिक्षादाता, तामसी वृत्ति व इन्द्रिय सुखों का परित्याग करने व कराने वाला होता है। अष्टमगृह - अष्टमेश सूर्य उच्च राशि का होकर चौथे घर में बैठा है अतः ऐसा जातक पर्याप्त आयु का भोगी होता है। अर्थात् पूरी आयु भोग कर स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त करता है। नवमगृह - कन्या राशि का स्वामी बुद्ध चौथे स्थान में चला गया है। जिस के कारण जातक की धार्मिक प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिल रहा है। साथ ही चन्द्रमा के क्षेत्र में राहु के बैठने से परम्परा से चली आ रही धार्मिक विचार धारा का विरोधी बनने के पूरे आसार है। (यज्ञ-यागों में पशुबलि, वर्णवाद - जातिवाद आदि अनेक परम्पराओं का विरोध ) । गुरु उच्च का होने से राजकुलोत्पन्न, यह जातक अलंकार प्रिय होता है। चन्द्रमा धर्मस्थान में है अतः नीर-तीरे इनके जीवन की महान घटना घटने (ऋतुकूला नदी के तट के समीप केवलज्ञान प्राप्ति) के योग हैं। दशमगृह - शनि उच्च का होकर राज्य स्थान में विद्यमान है तथा सूर्य और बुद्ध उसे पूर्ण दृष्टि से देखते हैं। इसलिये यहां एक तरफ राजयोग बन रहा है। वहीं तुला राशी का स्वामी बुद्ध शुक्र जो कर्मक्षेत्र का मालिक भी है। पंचम स्थान पर (जो बुद्धि का क्षेत्र है) चला गया है। फलतः राजयोग से विपरीत होना आवश्यम्भावी है। इसके परिणामस्वरूप ऐसा राजकुमार एक वैरागी सन्यासी होता है। ऐसे राजघराने के बालक का लालन-पालन धायों द्वारा होना बिल्कुल स्वाभाविक है। एकादशं गृह- आय-स्थान का स्वामी मंगल लग्न में केतु के साथ उच्च क्षेत्र होकर बैठा है। यह सम्पन्न जातक आय को परमार्थ में लगाने वाला होता है (वर्षीदानदाता) एकादश भाव पर उच्च क्षेत्री गुरु एवं होत्री शुक्र की पूर्ण दृष्टि है । इस जातक के इकबाल की बुलंदी जवानी से ही शुरू होती है। यह जातक एक नामवर हस्ती ( महाभाग) होता है। बहुत ही कमाल का पहुंचा हुआ एक ऐसा व्यक्ति होता है जिसको समाज का पूज्यवर्ग (ऋषि महर्षि, ब्राह्मण वर्ग भी) मान-सम्मान दें।
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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