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________________ क्षत्रियकंड विषय इतने गंभीर और विशाल हैं कि जिनका यथार्थ वर्णन करना मेरे जैसे अल्पज्ञ व्यक्ति की शक्ति से बाहर है। वास्तव में ये सब विषय विश्व केलिए बहुत विधान-रूप और कल्याणकारी सिद्ध हुए हैं। इस के समर्थन में अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं। तथापि यहां पर लोकमान्य तिलक आदि जैसे एकाध देशनेता एवं ऐतिहासज्ञ के प्रमाण देना उचित होगा। उन्होंने औरएंटल कांफ्रेंस में कहा था कि "आज ब्राह्मणों की संस्कृति में जो अहिंसात्मक वृत्ति दृष्टिगत हो रही है वह सब जैनधर्म के प्रभाव से ही है। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि भगवान महावीर ने इस अहिंसात्मक महान उद्धार का झंडा न उठाया होता तो आर्य संस्कृति नष्ट हो जाती।" डा. राधाविनोद पाल Ex Gudge International Tribunal for trying Japanese war criminals a अपने अभिपराय में कहा था कि___ "विश्व-शांति संस्थापक सभा के प्रतिनिधियों का हार्दिक स्वागत करने का अधिकार केवल जैनों को ही है। क्योंकि अहिंसा ही विश्वशांति का साम्राज्य स्थापित कर सकती है और उस अनोखी अहिंसा की भेंट जगत को जैनधर्म के निर्यामक तीर्थंकरों ने ही दी है। इसलिये विश्व-शांति की आवाज पार्श्वनाथ और महावीर के अनुयायियों के सिवाय दूसरा कौन कर सकता है।" इसलिये आर्य संस्कृति के अन्तिम श्वास लेते समय संजीवनी-दाता भगवान महावीर ही थे। मानव संसार को मानवता का पाठ पढ़ाने वाले परमगुरु महावीर ही थे। बलिदान की जलती ज्वालाओं से नष्ट होते हुए उपकारी और उपयोगी पशुओं के प्राणदाता प्रभु महावीर ही थे। अनेक प्रकार के मत-भेदों में उत्पन्न होने वाले विग्रहों का स्याद्वाद शैली से समाधान कर सब को एक सत्र में संगठित करने वाले सूत्रधार महामानव महावीर ही थे। पशुधन को हाससे कपि ह्रास और उससे होने वाले अन्नसंकट और रोगभय से रक्षण करने वाले महाश्रमण भगवान महावीर ही थे। इस माया के मृगजाल की तृष्णा में तड़पते हुए प्राणियों को आत्मज्ञान का अमृतपान कराने वाले महातत्वज्ञ भगवान महावीर ही थे। सृष्टि के निर्माता की कल्पना में पुरुषार्थहीन बन बैठी रहने वाली प्रजा को अपने पुरुषार्थ-भरे कर्तव्य कां भान कराने वाले मार्गदर्शक महावीर ही थे। अनेक प्रकार की विडम्बनाओं से निराधार बने हुए आत्माओं केलिये मच्चे आधार स्तम्भ महावीर ही थे। उन गणसागर का जितना भी वर्णन किया जावे उतना ही थोड़ा है। उन्होंने सर्वसाधारण जनता को मानव संस्कृति विज्ञान (Science of Human culture) के विकास की पराकाष्ठा पर पहुंचने के लिये मक्ति
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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