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________________ १४८ वैशाली का अंत वैदेशिक संबंध लिच्छिवियों के विदेशी संबन्धों का नियंत्रण अठारह (१८) गणराज्यों की. परिषद से होता था। इस का वर्णन बौद्ध और जैनसाहित्य में मिलता है। नौ लिच्छिवियों और नौ मल्लों के साथ मिलकर यह महासंघ (Council) करता था। अजातशत्रु वैशाली पर आक्रमण के मुकाबले में उन्होंने अपने सन्देश भेजने केलिए दूत नियुक्त किए वे (बैशालिकानां लिच्छिविनां वचनेन)। बद्ध के समय में वैशाली गंगा से तीन योजन (लगभग सत्ताइस मील की दरी पर थी।) और उन दिनों गंगानदी से वैशाली पहंचते थे। यवानच्याङ ने भी गंगानदी से वैशाली की दूरी १३५ ली (२७ मील) लिखी है। वैशाली गणतंत्र का अन्त वैशाली गणतंत्र पर मगधनरेश श्रेणिक बिंबसार की रानी चेलना (चेटक की पुत्री) के पुत्र अजातशत्रु (कोणिक) का वैशाली, पर आक्रमण घातक प्रहार था। उसकी साम्राज्य विस्तार अकांक्षा ने वैशाली का अन्त करदिया। बुद्ध की भेंट के बाद मन्त्री वस्सकार को अजातशत्र ने वैशाली भेजा उसने वैशाली के लोगों में फट के बीज बोए अजातशत्र ने ई.प.५४४ वर्ष (भगवान महावीर की दीक्षा के चौबीस पच्चीस वर्ष बाद) बहुत बड़ी सेना लेकर वैशाली पर आक्रमण कर दिया जिसका वर्णन जैनागम निर्यावलियाओं में इस प्रकार है "तब राजा कोणिक (अजातशत्र) हज़ारों हाथियों, घोड़ों, रथों और पैदल सेना (चतरंगिणी सेना) सहित सब सुविधाओं महित अंग जनपद के बीच में से निकला एवं विदेह जनपद की वैशाली नगरी की ओर युद्ध केलिए गया। वहां पहुंच कर उसने वैशाली को घेर लिया उधर से वैशाली नरेश चेटक अपनी और अपने सहयोगी १८ गणराज्यों की सेनाओं के साथ अजातशत्र की सेना से अपने राज्य की रक्षा केलिए यद्धक्षेत्र में आ डटा। प्रलयंकारी घमासान युद्ध हुआ। १२ वर्षों तक युद्ध चालू रहा। अंत में अजातशत्र की विजय हुई।" ___ आचार्य हेमचन्द्र कृत त्रिशष्टिशलाका परुष चरित्र पर्व दस सर्ग बारह में कहा है कि- अजातशत्रु की सेना ने वैशाली में निर्मित बीसवें तीर्थंकर श्री मनिसव्रतस्वामी के स्तूप को तोड़कर ध्वस्त कर दिया। जो परमार्हत महाराजा चेटक के उपास्यदेव का बैनमन्दिर था। अतः अजातशत्र ने अपने मंत्री बस्सकार द्वारा कटनीति से वज्जियों में फट डलवाई और उनके उपास्य इष्टदेव
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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