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________________ पामिक सिद्धान्तों से तुलना : ११ कर्म बौद्धधम एक मनोवैज्ञानिक धम है। मनोविज्ञान की आधारशिला पर वह प्राणि-अगत् को कम्मदायाद कम्मस्सक कमयोनि और कम्मपटिसरण कहता है । भगवान् बद्ध के इन बचनों में बौद्धधर्म का सार निहित है। बौद्धधम की यह कम पादिता उसकी बद्धिवादिता का परिणाम है । बौद्ध विचारकों ने भी क्रिया के अथ में ही कम शब्द का प्रयोग किया है। वहां भी शारीरिक बाचिक और मानसिक क्रियाओं को कम कहा गया है जो अपनी नैतिक शुभाशुभ प्रकृति के अनुसार कुशल अथवा अकुशल कम क जाते हैं। भगवान् बद्ध न कम शब्द का प्रयोग बड व्यापक रूप में किया है । उसे वह चेतना का पर्यायवाची मानते थे। यह बात उनको निम्नलिखित उनि से प्रकट है चेतना ही भिक्षुओ का कम है में ऐसा कहता है। चेतनापूवक कर्म किया जाता है काया से वाणी से या मन से। यहां पर चेतना को कर्म कहने का आशय केवल यही है कि चेतना के होने पर ही ये समस्त क्रियाए सभव है । बौद्ध दशन म चेतना को ही कम कहा गया है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि दूसरे कर्मों का निरसन किया गया है। कम मलत दो प्रकार के है-चतना कम और चेतयित्वा कर्म । चित्त कर्म ( मानसिक कम ) और चेतयित्वा अथवा चेतसिक कर्म ( काय बोर वचन से उत्पन्न होने के कारण कायिक और वाचिक कर्म ) कहे गये है। इस प्रकार कर्म शब्द क्रिया के अथ म प्रयुक्त होता है लेकिन कर्म शब्द का अथ क्रिया से अधिक विस्तृत है। कर्म शब्द में शारीरिक मानसिक और वाचिक क्रियाओं का निर्धारण और उन भावी क्रियाओं के कारण उत्पन्न होनेवाली अनुभूति सभी समाविष्ट हो जाती है। कर्म म क्रिया का उद्देश्य क्रिया और उसके फलविपाक दोनो ही अर्थ लिये जाते हैं । आचाय नरेन्द्रदेव ने लिखा है केवल चेतना ( आशय) और कम ही सकल कर्म नही है। कम के परिणाम का भी विचार करना होगा। इससे एक अपूर्व कर्म एक अविज्ञप्ति होती है। बौद्ध-दर्शन कर्म के चैत्तसिक पक्ष को ही स्वीकार करता है और यह मानता १ ममिमनिकाय चलकम्मविभगसुत्त ३।४।५ । २ सयुत्तनिकाय (रो ) जिल्द २ ५ ३९४ अगुप्तरनिकाय (रो ) जिल्द २ पृ १५७-५८ बौद्धधर्म के विकास का इतिहास १८४। ३ बौवधर्म-पशन १ २४९ । ४ वही १ २५५ ।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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