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________________ ११२ : बौद्ध तथा जैनधर्म है कि बन्धन के कारण अविद्या वासना तष्णा आदि चत्तसिक तत्व ही है। यदि ऐसा नहीं तो मानना पड़ेगा कि काय वाक और मन ये तीन कर्मद्वार हैं। सभी कर्म इन्हीं द्वारों से सम्भूत हैं एव मन का सम्बन्ध सभी के साथ ह । मन उनका प्रतिशरण है । कहा गया है- सारी अवस्थाओं का मन अगुवा है मन प्रधान ह और सारे कम मनोमय है | जब अपना मन बरा या भला होता है तब कायिक और वाचिक कृत्य भी उसके मुताबिक बर या भले होते हैं । अनक प्रकार से किया गया है । बौद्धकम विचारणा म कर्मों का विभाजन बुद्धघोष ने इन्हें चार प्रकार से विभाजित किया ह ( १ ) कृत्य के अनुसार ( २ ) विपाक देन के पर्याय से ( ३ ) विपाक के काल के अनुसार ( ४ ) विपाक के स्थान के अनुसार । सर्वास्तिवादी कर्मों का विभाजन किंचित निम्न प्रकार से करत थे । कर्म विपाक के सम्बन्ध में बोद्ध और जन दृष्टिकोण कम और विपाक की प परा से यह ससार चक्र प्रवर्तित होता रहता है । भगवान् बद्ध कहत है कि कम से विपाक प्रवर्तित हात ह और विपाक से कम उत्पन्न होता है । कर्म से पुनज म होता है और इस प्रकार यह ससार प्रवर्तित होता है । बौद्ध दार्शनिक भी कर्म और विपाक के सम्बध म इसे स्वीकार करते हैं। कहा गया है कि कम और विपाक के प्रवर्तित होन पर वृक्ष बीज के समान किसीका पूर्व छोर नही जान पडता है | बौद्ध दार्शनिको के अनुसार जसे किसी बीज के भुन जान पर उस बीज की दष्टि से बीज-वृक्ष की परपरा समाप्त हो जाती ह वैसे ही व्यक्ति के राग द्वेष और मोह का प्रहाण हो जान पर व्यक्ति की कम विपाक-परपरा का अन्त हो जाता है । जन दार्शनिको के अनुसार भी राग-द्वेषरूपी कम बीज के भन जाने पर कर्म प्रवाह की परपरा समाप्त हो जाती है । अब प्रश्न यह उठता है कि क्या का फल दूसर व्यक्ति को दे सकता है ? एक यक्ति अपने किये हुए शुभाशुभ कर्मों क्या व्यक्ति अपने किये हुए शुभाशुभ कर्मों १ मनोपुव्वङ्गमा घम्मा मनोसेटठा मनोमया । २ विसुद्धिमग्ण भाग २ प २४ । ३ सिस्टम्स ऑफ बद्धिस्टिक घाट सोगेन यावाकामी पू १५ । ४ मज्झिमनिकाय ( फितिसुत ३1१1३ ) तथा जन बौद्ध तथा गीता के आचार दर्शनो का तुलनात्मक अध्ययन भाग १ प ३१४ । धम्मपद गाथा - सख्या १ ।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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