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________________ १६ बोब सवा नपर्म धम्मपद के तेरहवें लोकवग्ग म कहा गया है कि नीच कम न करें प्रमाद में न रहें मावागमन के चक्र म न पड उठ और धम का आचरण कर । सुचरित बम का आचरण करनेवाला धर्मचारी इस लोक तथा परलोक दोनो जगह सुखपवक रहता है। लेकिन जिसने घम का उलधन किया ह जो झठ बोलता है और परलोक का हंसी-मजाक उडाता है ऐसा मनुष्य किसी प्रकार के पाप करने से न डरेगा। उन्नीसवें धम्मटठवग्ग म पम म स्थित रहनेवालो की प्रशसा की गई है। अधिक बकवाद करने से मनष्य घम का धारण करनवाला नही कला सकता । वही पुरुष सबमुच षम को धारण करनेवाला है जो यद्यपि थोडा बोलता है लेकिन अपने जीवन से उस सिद्धान्त को देखता ह जो मन य विचारपक्षक समान घम से दूमरो का पथ प्रदशन करता है और जो धर्म द्वारा रक्षित तथा मघावी ह। वही बम को धारण करनेवाला है जो कभी घम की अवहेलना नही करता। धम को सवत्र प्रशसा की गयी है। धम्मपद में भी कहा गया है कि घम का दान सब दानो से श्रेष्ठ है धम की मिठास सब मिठाइयों से श्रेष्ठतम है घम का आनद सब सुखो से बढकर है । जैन दशन म धम का व्युत्पत्तिमलक अथ ह धारणात बम अर्थात जो पारण किया जाये वह धर्म ह । ध धातु के धारण करने के अथ म बम शब्द का प्रयोग होता है। जैन-पर परा म वस्तु का स्वभाव धम कहा गया है। प्रयक वस्तु का किसी न किसी प्रकार का अपना स्वभाव होता है। वही स्वभाव उस वस्तु का अपना धम माना जाता है। आ मा के अहिसा सयम तप आदि गुणो को भी घम का नाम दिया गया है। यही नहीं वरन समष्टि रूप म इसे इस प्रकार भी कह सकत है कि धर्म आत्मा की राग द्वष-तीन परिणति है। इनके अतिरिक्त पम के और भी अनक अथ होते हैं । उदाहरण के लिए नियम विधान परम्परा यवहार परिपाटी प्रचलन माचरण कतव्य अधिकार न्याय सद्गुण नतिकता क्रिया सत्कम आदि अर्थो म कम शब्द का प्रयोग होता आया है। १ धम्मपद १६७ १६९ । २ वही १७६ । ३ वही २५७ २५९ । ४ सब्बदान धम्मदान जिनाति स ब रस व मरसो जिनाति । सब्ब रति धम्मरसो जिनाति। वही ३५४ । ५ जैन-दशन मेहता मोहनलाल प ८। ६ जैन दर्शन मनन और मीमासा मुनि नथमल प २९१ । ७ भगवान महावीर पाठक शोभनाथ प ९९ ।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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