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________________ धार्मिक सिद्धान्तों से तुलना १७ धम शब्द की वरीयता को परखने का मनीषियों ने भी खब प्रयास किया है । अत धमवित्त का वह भाव ह जिसके द्वारा हम विश्व के साथ एक प्रकार के मेल का अनुभव करते हैं । इस प्रकार विद्वानो ने धम को महत्ता को आंकने का terrate प्रयास किया है किन्तु तथ्यत घम वही है जिससे मानवता का कल्याण हो । महावीर ने मानव कल्याण हेतु धर्म की उपयोगिता का उपदेश इस रूप में दिया ह । यथा - जिस समय ससारी जीव जन्म जरा और मरण तथा आणि व्याधिरूप जलराशि के महान वेग में बहते हुए व्याकुल हो उठत हैं उस समय इस घमरूप महाद्वीप की शरण में जान से उनकी रक्षा हो जाती है । यहाँ पर जन्म जरा और मृत्यु को समद्र जल के समान कहा गया है और श्रुत चारित्ररूप धम को महाद्वीप बतलाया गया है । इसलिए ससाररूप समुद्र के जरा-मरणादिरूप जल प्रवाह में बहते हुए प्राणियो को इसी धर्मरूप महाद्वीप का सहारा द और इसीकी शरण में जाना सर्वोत्तम ह । किन्तु मनुष्य भौतिकता में भटक घम की यथाथता को परख नही पाता जो उसके इस लोक और परलोक को सवारने में सक्षम होता है । तीथकर महावीर ने मनुष्यो को आगाह किया है कि जो रात्रि चली जाती है वह बापस लौटकर नही आती किन्तु अधम का सेवन करनवाले मनुष्य की सभी रात्रियाँ निष्फल हो जाती है । अर्थात् मनुष्य उन रात्रयो म न जाने दे सत्य आचरण से धम का क्योकि धम के अतिरिक्त इस संसार म आए । तथ्यत सत्य शिव सुन्दरम की विषय में जो कुछ कहा वह लोक मङ्गल की पथक्त्व कृत्रिमता व रूढ़िवादिता से ग्रस्त हिंसा कहे जा सकत । यही कारण था कि तत्कालीन करवटें बदलता हुआ सुअवसर हाथ से पालन करे जिससे वास्तविक कल्याण हो । कोई वस्तु विद्यमान नही जो तरे उपयोग म घम ह । महावीर न घम के सम्बंधित है । उनकी दृष्टि में या अन्य कष्टदायक कृत्य धम नही हिंसा का उन्होंने घोर विरोध किया. समष्टि ही भावना से १ जैन दर्शन प ९१ । पाणिण | २ जरामरण वेगेण बुज्झमाणाण धम्मो दीवो पइटठाय गई सरण मुत्तम ॥ ३ जाजा बबइ रयणी नसा पडिनिगत्तई । धम्मच कुणमाणस्स सफलाजति राइओ ॥ ४ वही १४।४ । उतराध्ययन २३।६८ । वही ४।२४ २५
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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