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________________ पानिक सिद्धान्तों से तुलना : १५ कारण है कि धर्म को कोई एक सवमान्य परिभाषा नही उपलब्ध होती । व्युत्पत्ति के अनुसार इसके प्राय दो अर्थ किये जाते हैं (१) ध्रियते लोक अनेन इति धर्म अर्थात जिससे लोक धारण किया आय वह धर्म है और ( २) घरति धारयति वा लोक इति धम अर्थात जो लोक को धारण करे वह षम है। मूल भावना यह है कि धम के द्वारा ही इस लोक का पारण या सचालन होता है। जीवन के चार पुरुषार्थों में धम का प्रमख स्थान है । घम की मान्यता के अनुसार धम और स य एक है तथा दोनों पर्याय वाची शब्द है । घम सत्य के ही माग का नाम है । धम्मपद म भी सत्य सयम दम और अहिंसा को धर्म के ही अन्तगत माना गया ह । आचाय बुद्धघोष ने विसुद्धिमग्न में धम शब्द के मुख्यत चार अर्थों का विवचन किया . (१) सिद्धात (२) हतु ( ३ ) गुण और (४) निसत्त । बौद्ध-साहित्य म घम शद का प्रयोग और भी व्यापक अर्थ म किया गया ह । वह कही स्वभाव कही कत्तव्य कही वस्तु और कही विचार और प्रथा का वाचक भी बनकर आया ह । इसके अतिरिक्त धम शब्द का प्रयोग बाघि षम या ज्ञान घम के लिए भी कहा गया ह। ज्ञान का ही बौद्ध लोग सचा धम मानत थ । ज्ञान के अतिरिक्त धम शब्द का प्रयोग सत्य के अथ में भी मिलता है । धम्मपद म धम श द का प्रयोग भगवान बद्ध के उपदेशो के लिए किया गया ह। उसम लिखा ह कि बद्धिमान् लोग धम अर्थात भगवान बद्ध के वचनो को सुनकर उसी प्रकार शुद्ध और निमल हो जात है जिस प्रकार गम्भीर जलाशय मे जल निमल हो जाता ह । जो अछी तरह उपदिष्ट धम म धर्मानुचरण करते हैं वे ही दस्तर मृत्यु के राय का पार कर सकत है । इस प्रकार हम देखत ह कि धम्मपद म धम शब्द का प्रयोग भगवान् बद्ध के उपरेशो के अथ म किया गया है । १ बौद्ध दशन तथा अय भारतीय दशन उपाध्याय भरतसिंह भाग १ पृ ११९। २ यम्हि सच्चन्च धम्मो च अहिंसा सन्नगो दमो ।। धम्मपद २६१ । ३ बौद्ध दशन तथा अन्य भारतीय दशन भाग १ १२१ । ४ वही पृ १२ । ५ यथापि रहदो गम्भीरो विप्पसन्नो अनाविलो । एव धम्मानि सुब्वान विप्पसोदन्ति पण्डिता ॥ धम्मपद ८२ । ६ य प खो सम्दक्खाते पम्मानवत्तिनो। तेजना पारमेस्सन्ति मञ्चुषेय्य सदुत्तरं । वही ८६ ।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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