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________________ २०४ोडतान वृद्धि एवं ह्रास से रहित अविनश्वर ज्ञानरूप दशनरूप पुनजन्म से रहित तथा एकान्त अधिष्ठानरूप है। मोक्ष का वणन उत्तराध्ययन के छत्तीसव अध्ययन म है लेकिन अनेक अध्ययनों की परिसमाति में सिद्ध गति निर्वाण या मोक्ष प्राप्त होने का उल्लेख है। मोक्ष की प्राप्ति के लिए श्रद्धा ज्ञान और चारित्ररूप रत्नत्रय को आवश्यकता पड़ती है। चार्वाक दर्शन को छोडकर अय सभी भारतीय दशनो का भी प्रधान लक्ष्य जीवों को मुक्ति की ओर ले जाना है। इस तरह उत्तरा पयन म जो मक्ति की अवस्था दर्शायी गयो है वह एक दिय अवस्था ह जहाँ न तो स्वामी-सेवकभाव है और न कोई इछा इसे प्राप्त कर लेन पर जीव कभी भी ससार म नहीं आता। वह कम बन्धन से पूण मक्त हो जाता है । यह आ मा के निलिप्त स्वस्वरूप की स्थिति है । सब प्रकार के सासारिक बन्धनो का हमेश के लिए अभाव हाने स इसे मक्ति कहा गया है । इस प्रकार तुलनामक अध्ययन करन पर पता चलता है कि धम्मपद एव उत्तराध्ययनसूत्र जिस प्रकार आमा के विषय म एकमत नहीं है ठीक उसी प्रकार निर्वाण के विषय म भी एकमत नही हैं यद्यपि दोनो ग्रयो म निर्वाण का चर्चा है । धम्मपद म जहाँ विमक्ति को अवस्था के लिए निर्वाण शब्द का प्रयाग किया गया है वही उत्तराध्ययनसूत्र म निर्वाण शद की अपेक्षा मोम गद का ही प्रयाग अधिक है। लेकिन दोनो ग्र थो म निर्वाण के लिए सचे विश्वास ज्ञान और आचार विचार को प्रधानता दी गयी है। दोनो म मख्य अन्तर यह है कि बौद्ध दष्टि से द्रय सत्ता का अभाव हो निर्वाण है जब कि जन दष्टि से आमा को शुद्ध अवस्था निर्वाण ह । बम का स्वरूप धम का स्वरूप बडा यापक है । उसको इस विशेषता के कारण ही बड-बड विद्वान उसका कोई एसा स्वरूप निर्धारित नही कर पाते हैं जो सवमा य हो। यही १ अरुविणोजोवणा नाणदसण सनिया। अउल सुह सपत्ता उवमाजस्सनत्यि उ ।। उत्तरा ययन ३६६६ । २ वही ३६।४८-६७ । ३ वही ११४८ ३१२ १३७ ११॥३२ १२।४७ १३॥३५ १४१५३ १६३१७ १८१५३ २११२४ २४।२७ २५।४३ २६५२ ३ ॥३७ ३१।२१ ३२।१११ ३५।२१ ३६॥ ६८। ४ उत्तराध्ययनसूत्र एक परिशीलन ५ ३८८८९ ।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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