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________________ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका पीठिका ] [ ५३ बहुरि अधकरण का वर्णन है । तहा विशुद्धता की वृद्धि आदि च्यारि आवश्यकनि का, अर तहां सभवते परिणाम, योग, कषाय, उपयोग, लेश्या, वेद, अर प्रकृति, स्थिति, अनुभाग, प्रदेशरूप कर्मनि का सत्त्व, बध उदय, तिनका वर्णन है । बहुरि पूर्वकरण का वर्णन है । तहा सभवते स्थितिकाडकघात, अनुभागकाडकघात, गुणश्रेणी, गुणसंक्रम इनका विशेष वर्णन है । अर इहा प्रकृतिबंध की व्युच्छित्ति हो है, तिनका वर्णन है । इहातै लगाय क्षपक श्रेणी विषै जहा जहां जैसा - जैसा स्थितिबधापसरण, अर स्थितिकाडकघात, अनुभागकाडकघात पाइए अर इनको होते जैसा जैसा स्थितिबंध, अर स्थितिसत्त्व र अनुभागसत्त्व रहै, तिनका बीच-बीच वर्णन है, सो कथन होगा तहा जानना । बहुरि अनिवृत्तिकरण का कथन है । तहा स्वरूप, गुणश्रेणी, स्थितिकाडकादि का वर्णन करि कर्मनि का क्रम लीए स्थितिबंध, स्थितिसत्त्व करने रूप क्रमकरण का वर्णन है । बहुरि गुणश्रेणी विषै असख्यात समयप्रबद्धनि की उदीरणा होने लगी, ताका वर्णन है । बहुरि प्रत्याख्यान - अप्रत्याख्यानरूप आठ कषायनि के खिपावने का विधान वर्णन है । बहुरि निद्रा - निद्रा आदि सोलह प्रकृति खिपावने का विधान वर्णन है । बहुरि प्रकृतिनि की देशघाती स्पर्द्धकनि का बध करनेरूप देशघातीकरण का वर्णन है । बहुरि च्यारि संज्वलन, नत्र नोकषायनि के केतेइक निषेकनि का अभाव करि अन्यत्र निक्षेपण करनेरूप अंतरकरण का वर्णन है । बहुरि नपुसकवेद खिपावने का विधान वर्णन है । तहा सक्रम का वा युगपत् सात क्रियानि का प्रारंभ हो है, तिनका इत्यादि वर्णन है । बहुरि स्त्रीवेद क्षपणा का वर्णन है । बहुरि छह नोकपाय अर पुरुषवेद इनकी क्षपणा का विधान वर्णन है । बहुरि अश्वकर्णकरणसहित पूर्वस्पर्द्धक करने का वर्णन है । तहा पूर्वस्पर्द्धक जानने कौ वर्ग, वर्गरणा, स्पर्द्धकनि का घर तिनविषै देशघाती, सर्वधातिनि के विभाग का, वा वर्गरगा की समानता, असमानता आदि का कथन करि अश्वकरण के स्वरूप, विधान क्रोधादिकनि के अनुभाग का प्रमाणादिक का अर अपूर्वस्पर्द्धकनि के स्वरूप प्रमाण का तिनविधै द्रव्य - अनुभागादिक का, तहा समय-समय सबधी क्रिया का वा उदयादिक का बहुत वर्णन है । बहुरि कृष्टिकरण का वर्णन है । तहा क्रोधवेदककाल के विभाग का, र बादरकृष्टि के विधान विषै कृष्टिनि के स्वरूप का, तहां वारह सग्रहकृप्टि, एक - एक संग्रहकृष्टि
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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