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________________ ५२ ] [ लब्धिसार-क्षपणासार सम्बन्धी प्रकरण घर नौवेद पर छह हास्यादिक, पुरुषवेद, तीन क्रोध पर तीन माया अर दोय लोभ; इनके उपशमावने के विधान का अनुक्रम तैं वर्णन है । तहा गुणश्रेणी का वा स्थिति अनुभागकांडकघात होने न होने का घर नपुंसकवेदादिक विषै नवकवंध के स्वरूप परिणमनादि विशेष का, वा प्रथम स्थिति के स्वरूप का आदि विशेष का, वा तहां ग्रागाल. प्रत्यागाल गुणश्रेणी न हो है इत्यादि विशेषनि का, श्रर संक्रमणादि विशेष पाइए हैं, तिनका इत्यादि अनेक वर्णन पाइए है । बहुरि संज्वलन लोभ का उपशम विधान विपे लोभ-वेदककाल के तीन भागनि का, अर तहा प्रथम स्थिति त्राटिक का वर्णन करि सूक्ष्मकृष्टि करने का विधान वर्णन है । तहां प्रसग पाइ वर्ग, वर्गरणा, स्पर्द्धकनि का कथन करिअर कूष्टि करने का वर्णन है । इहां बादरकृष्टि ती ही नाही, सूक्ष्मकृप्ट है, तिनविषे जैसे कर्मपरमाणु परिणमै है वा तहां ही जैसे ग्रनुभागादिक पाइए हैं, वा तहां अनुसमयापवर्त्तनरूप अनुभाग का घात हो है इत्यादिकनिका, घर उपशमावने आदि क्रियानि का वर्णन है । बहुरि सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान की प्राप्त होड सूक्ष्मकृष्टि को प्राप्त जो लोभ, ताके उदय कौ भोगवने का, तहा संभवती गुणश्रेणी, प्रथम स्थिति आदि का इहां उदय अनुदयरूप जैसे कृष्टि पाइए निका, वा संक्रमण - उपशमनादि क्रियानि का वर्णन है । वहुरि सर्व कषाय उपशमाय उपशांत कपाय हो है ताका, अर तहां संभवती गुणश्रेणी यादि क्रियानि का, घर उहा जे प्रकृति उदय हैं, तिनविषे परिणामप्रत्यय श्रर भवप्रत्ययरूप विशेष का वर्णन है । ग्रैम सभवती इकईस चारित्रमोह की प्रकृति उपणमावने का विधान कहि उपगांत कपाय ते पडनेरूप दोय प्रकार प्रतिपात का, तहां भवक्षय निमित्त प्रतिपान ने देव नववी असयत गुणस्थान को प्राप्त हो है । तहा गुरणश्रेणी वा अनुपम वा अतर का पूरा करना इत्यादि जे क्रिया हो है, तिनका वर्णन है । घराय निमित्त ते क्रम ते पडि स्वस्थान ग्रप्रमत्त पर्यंत प्राव तहा गुणश्रेणी प्रादिकका वा चटते जे क्रिया भई थी, तिनका ग्रनुक्रम ते नष्ट होने का वर्णन है । रतनं पड़ने का तहां सभवति क्रियानि का पर ग्रप्रमत्त ते चढै तो बहुरि श्रेणी गाउँ नाका वर्णन है । मैने पुरुषवेद, सज्वलन क्रोध का उदय सहित जो श्रेणी ... मी नाही अपेक्षा वर्णन है । बहुरि पुरुषवेद, सज्वलन मान सहित यादि ग्यारह प्रकार उपराम श्रेणी चटनेशन के जो-जो विशेष पाइए है, तिनका वर्णन है । बहुरि पारित विधान विषे संभवने काल का अल्पवहुत्व वर्णन है । क्षणागार के अनुनारि लोग आर्थिकचारित्र के विधान का वर्णन है । तहां मी प्रमिका का घर अपक श्रेणी की सन्मुख जीव का वर्णन है ।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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