SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लिब्धिसार-क्षपणासार सम्बन्धी प्रकरण विर्ष अनती अतरकृष्टि तिनका, अर तिनविर्ष प्रदेश अनुभागादिक के प्रमाण का, तहां समय-समय सवधी क्रियानि का वा उदयादिक का अनेक वर्णन है । वहुरि कृष्टि वेदना का विधान वर्णन है । तहां कृष्टिनि के उदयादिक का, वा संक्रम का, वा घात करने का, वा समय-समय संबंधी क्रिया का विशेष वर्णन करि क्रम तें दश संग्रहकृप्टिनि के भोगवने का विधान-प्रमाणादिक का बहुत कथन करि तिनकी क्षपणा का विधान वर्णन है । बहुरि अन्य प्रकृति संक्रमण करि इनरूप परिणमी, तिनके द्रव्यसहित लोभ की द्वितीय, तृतीय सग्रहकृष्टि के द्रव्य को सूक्ष्मकृष्टिरूप परिणमावै है, ताके विधान-स्वरूप-प्रमाणादिक का वर्णन है । असे अनिवृत्तिकरण का बहुत वर्णन है। याविप गुणश्रेणी-अनुभागघात के विशेष आदि बीचि-बीचि अनेक कथन पाइए है, सो आगे कथन होइगा तहां जानना। वहरि सूक्ष्मसापराय का वर्णन है। तहां स्थिति, अनुभाग का घात वा गुणश्रेणी आदि का कथन करि बादरकृष्टि संबंधी अर्थ का निरूपण पूर्वक सूक्ष्मसापराय सवंधी कृष्टिनि के अर्थ का निरूपण, अर तहां सूक्ष्मकृष्टिनि का उदय, अनुदय, प्रमाण अर संक्रमण, क्षयादिक का विधान इत्यादि अनेक वर्णन है । बहुरि यहु तो पुरुषवेद, संज्वलन क्रोध का उदय सहित श्रेणी चढ्या, ताकी अपेक्षा कथन है । बहुरि पुरुषवेद, संज्वलन मान आदि का उदय सहित ग्यारह प्रकार श्रेणी चढने वालो के जो-जो विशेप पाइए, ताका वर्णन है । औसै कृष्टिवेदना पूर्ण भए । बहुरि क्षीणकषाय का वर्णन । तहां ईर्यापथबंध का, अर स्थिति-अनुभागघात वा गुगथेणी आदि का, वा तहां संभवते ध्यानादिक का अर ज्ञानावरणादिक के क्षय होने के विधान का, अर इहाँ शरीर सम्बन्धी निगोद जीवनि के अभाव होने के क्रम का इत्यादि वर्णन है। बहरि सयोगकेवली का वर्णन है । तहां ताके महिमा का अर गुणश्रेणी या पर विहार-पाहारादिक होने न होने का वर्णन करि अतर्मुहुर्त मात्र आयु रहै प्रायजिनकरण हो है ताका, तहां गुणश्रेणी आदि का, अर केवलसमुद्घात का, तहा दं-कपाटादिक के विधान वा क्षेत्रप्रमाणादिक का, वा तहा संभवती स्थिति-अनुभाग घटने ग्रादि क्रियानि का वा योगनि का इत्यादि वर्णन है । वहुरि वादर मन-वचन गय योग को निरोधि मूदम करने का, तहां जैसै योग हो है, ताका अर सूक्ष्म मनोयोग, दचनगोग, उच्छ्वास-निश्वास, काययोग के निरोध करने का, तहां काययोग के
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy