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________________ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका पीठिका 1 [ ५१ तें जैसे जिनके जेते पाइए, अर बीचि में स्वामीरहित स्थान पाइए तिनका, अर ता विशुद्धता का वर्णन है । बहुरि सकलचारित्र तीन प्रकार - क्षायोपशमिक, श्रपशमिक, क्षायिक; तहां क्षायोपशमिक चारित्र का वर्णन । तिसविषे यहु जाकै होइ ताका, वा सन्मुख हो जो क्रिया होइ, ताका वर्णन करि वेदक सम्यक्त्व सहित चारित्र ग्रहण करनेवाले कैं दोय ही करण होइ इत्यादि अल्पबहुत्व पर्यंत सर्व कथन देशसंयतवत् है, ताका वर्णन है । बहुरि सकलसंयम स्पर्द्धक वा प्रविभागप्रतिच्छेदनि का कथन करि प्रतिपात, प्रतिपद्यमान, अनुभयरूप स्थान कहि ते जैसे जेते जिस जीव के पाइए, तिनका क्रम ते वर्णन है । तहां विशुद्धता का वा म्लेच्छ के सकलसंयम संभवने का वा सामयिकादि संबंधी स्थाननि का इत्यादि विशेष वर्णन है । बहुरि औपशमिक चारित्र का वर्णन है । तहां वेदक सम्यक्त्वी जिस-जिस विधानपूर्वक क्षायिक सम्यक्त्वी वा द्वितीयोपशम सम्यक्त्वी होइ उपशम श्रेणी चढे है, ताका वर्णन है । तहां द्वितीयोपशम सम्यक्त्व होने का विधान विषै तीन करण, गुणश्रेणी, स्थितिकाडकादिक वा अंतरकरणादिक का विशेष वर्णन है । बहुरि उपशम श्रेणी विषै आठ अधिकार हैं, तिनका वर्णन है । तहां प्रथम अधःकरण का वर्णन है । बहुरि दूसरा अपूर्वकरण का वर्णन है । इहां संभवते श्रावश्यकनिका वर्णन है। इहांते लगाय उपशम श्रेणी का चढ़ना वा उतरणा विषै स्थितिबधापसरण अर स्थितिकांडक वा अनुभागकांडक के आयामादिक के प्रमाण का, अर इनको होते जैसा - जैसा स्थितिबंध अर स्थितिसत्त्व वा अनुभागसत्त्व अवशेष रहे, ताका यथा ठिकाणे बीचि-बीचि वर्णन है, सो कथन आगे होइगा तहां जानना । बहुरि पूर्वकरण का वर्णन विषै प्रसंग पाइ, अनुभाग के स्वरूप का वा वर्ग, वर्गणा, स्पर्द्धक, गुणहानि, नानागुणहानि का वर्णन है । अर इहां गुणश्रेणी, गुणसंक्रम हो है, भर प्रकृतिबंध का व्युच्छेद हो हैं, ताका वर्णन है । बहुरि अनिवृत्तिकरण का कथन विषै दश करणनि विषै तीन करणनि का अभाव हो है । ताका अनुक्रम लीएं कर्मनि का स्थितिबंध करने रूप क्रमकरण हो है ताका, तहां असंख्यात समयप्रवद्धनि की उदीरणादिक का, र कर्मप्रकृतिनि के स्पर्द्धक देशघाती करनेरूप देशघातीकरण का, कर्मप्रकृतिनि के केतेइक निषेकनि का प्रभाव करि अन्य निषेकनि विषै निपेक्षण करनेरूप अंतरकरण का, अर अंतरकरण की समाप्तता भए युगपत् सात करननि का प्रारंभ हो है ताका, तहां ही आनुपूर्वी संक्रमण का - इत्यादि वर्णन करि नपुसकवेद
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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