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________________ ५० 1 [ लघिसार-क्षपणासार सम्बन्धी प्रकरण द्रव्य की अपकर्षण करि अंतरायामादि विष दीजिए है ताका, अर दर्शनमोह का उदय भए वेदक सम्यक्त्व वा मिश्र गुणस्थान वा मिथ्यादृष्टि गुणस्थान हो है, तिनके स्वरूप का वर्णन है। बहुरि क्षायिक सम्यक्त्व का विधान वर्णन है । तहां क्षायिक सम्यक्त्व का प्रारंभ जहां होइ ताका, अर प्रारंभ-निष्ठापन अवस्था का वर्णन है । वहुरि अनंतानुवंधी के विसंयोजन का वर्णन है। तहां तीन करणनि का अर अनिवृत्तिकरण विर्षे स्थिति घटने का अर अन्य कषायरूप परिणमने के विधान प्रमाणादिक का कथन है। वहुरि विश्राम लेइ दर्शनमोह की क्षपणा हो है, ताका विधान वर्णन है । तहां संभवता स्थितिकाडादिक का वर्णन है । अर मिथ्यात्व, मिश्रमोहनी, सम्यक्त्वमोहनी विप स्थिति घटावने का, वा संक्रमण होने का विधान वर्णन करि सम्यक्त्वमोहनी की आठ वर्ष प्रमाण स्थिति रहे अनेक क्रिया विशेष हो हैं, वा तहां गुणश्रेणी, स्थितिकांडकादिक विप विशेष हो है, तिनका वर्णन है । वहुरि कृतकृत्य वेदक सम्यग्दृष्टि होने का वा तहां मरण होते लेश्या वा उपजने का, वा कृतकृत्य वेदक भए पीछे जे क्रिया विशेष हो हैं अर तहां अंतकांडक वा अंतफालि विष विशेष हो है, तिनका वर्णन है । वहुरि क्षायिक सम्यक्त्व होने का वर्णन है। वहुरि क्षायिक सम्यक्त्व के विधान विष संभवते काल का तेतीस जायगां अल्पबहुत्व वर्णन है। बहुरि क्षायिक सम्यक्त्व के स्वरूप का वा मुक्त होने का इत्यादि वर्णन है। वहुरि चारित्र दोय प्रकार - देशचारित्र, सकलचारित्र । सो ए जाकै होइ वा सन्मुख होते जो क्रिया होइ सो कहि देशचारित्र का वर्णन है। तहां वेदक सम्यक्त्व सहित देशचारित्र जो ग्रहै, ताके दोइ ही कारण होइ, गुणश्रेणी न होइ, देशसंयत को प्राप्त भए गुणश्रेणी होइ इत्यादि वर्णन है । वहुरि एकांतवृद्धि देशसंयत के स्वरूपादिक का वर्णन है । बहुरि अधःप्रवृत्त देशसंयत का वर्णन है। तहां ताके स्वरूप-कालादिक का, अर तहां स्थिति-अनुभागखंडन न होइ, अर तहां देशसंयत ते भ्रप्ट होइ देणसंयत कौं प्राप्त होड ताकै करण होने न होने का, अर देशसंयत विष संभवते गुणश्रेण्यादि विगेप का वर्णन है । बहुरि देशसंयम के विधान विप संभवते काल का अल्पवहुत्वता का वर्णन है । बहुरि जघन्य, उत्कृष्ट देशसंयम जाके होड ताका, अर देशसंयम विर्षे पदक का अविभागप्रतिच्छेद पाइए ताका वर्णन है । बहुरि देशसंयम के स्थाननि गा, पर निनके प्रतिपात, प्रतिपद्यमान, अनुभयरूप तीन प्रकारनि का, अर ते क्रम
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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