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________________ सामायिक प्रवचन (२) मृषावाद - झूठ बोलना । जो बात जिस रूप मे हो, उसको उसी रूप मे न कहकर विपरीत रूप से कहना, वास्तविकता को छिपाना 'मृपावाद' है । किसी भी अनपढ या नासमझ व्यक्ति को नीचा दिखाने की दृष्टि से, उसे अनपढ या बेवकूफ आदि कहना तथा क्रोध, ग्रहकार, भय, लोभ आदि के वश बोला गया सत्य वचन भी 'मृषावाद' है । ५४ (५) श्रदत्तादान - चोरी करना । जो पदार्थ अपना नही, किन्तु दूसरे का है, उसको मालिक की आज्ञा के बिना छिपाकर गुप्त रीति से ग्रहण करना 'ग्रदत्तादान' है । केवल छिपाकर चुराना ही नही, प्रत्युत दूसरे के अधिकार की वस्तु पर जवरदस्ती अपना अधिकार जमा लेना भी 'प्रदत्तादान' है ' (४) मैथुन - व्यभिचार सेवन करना । मोह - दशा से विकल होकर स्त्री का पुरुष पर या पुरुष का रत्री पर आसक्त होना, वेद-कर्मजन्य शृगार-सम्बन्धी चेष्टा करना, मानसिक, वाचिक और कायिक किसी भी काम विकार मे प्रवृत्त होना 'मैथुन' है । कामवासना मनुष्य की सबसे बडी दुर्बलता है । इसके कारण अच्छा से अच्छा मनुष्य भी, चाहे जैसा भी प्रकृत्य कार्य सहसा कर डालता है, आत्मभाव को भूल जाता है । एक प्रकार से मैथुन पापो का राजा है । (५) परिग्रह - ममता-बुद्धि के कारण वस्तुओ का अनुचित संग्रह करना या ग्रावश्यकता से अधिक संग्रह करना 'परिग्रह' है । वस्तु छोटी हो या बडी, जड हो या चेतन, चाहे जो भी हो, उसमे आसक्त हो जाना, उसको प्राप्त करने की लगन मे विवेक को खो बैठना 'परिग्रह' है । परिग्रह की वास्तविक परिभाषा मूर्च्छा है । अतएव वस्तु हो या न हो, परन्तु यदि मन मे तत्सम्बन्धी मूर्च्छा-ग्रासक्ति हो, तो वह सब परिग्रह ही माना जाता है । (६) क्रोध - किसी कारण से अथवा बिना कारण ही अपने आप को तथा दूसरो को क्षुब्ध करना 'क्रोध' है । जव क्रोध होता है तव ज्ञान - वश कुछ भी हिताहित नही सूझता है । क्रोध, कलह का मूल है । (७) मान -- दूसरो को तुच्छ तथा स्वय को महान् समझना 'मान' है । अभिमानी व्यक्ति प्रवेश मे ग्राकर कभी-कभी ऐसे असभ्य
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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