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________________ सामायिक के दोप ५१ काय के बारह दोष कुपासण चलासण चला दिट्ठी, सावज्जकिरियाऽऽलवणा-कु चरण पसारण । आलस-मोडन-मल-विमासण, निदा वेयावच्चत्ति वारस कायदोसा ॥ (१) कुप्रासन-सामायिक मे पैर-पर-पैर चढाकर अभिमान से बैठना अथवा गुरू महाराज आदि के समक्ष अविनय के ग्रासन से बैठना, 'कुप्रासन' दोष है। (२) चलासन-चल आसन से बैठकर सामायिक करना, अर्थात् स्थिर आसन से न बैठकर बार-बार आसन बदलते रहना 'चलासन' दोष है। (३) चल दृष्टि-अपनी दृष्टि को स्थिर न रखना, बार-बार कभी इधर तो कभी उधर देखना 'चल दृष्टि' दोप है। (४) सावध क्रिया-शरीर से स्वय सावद्य-पाप-युक्त क्रिया करना, या दूसरो को करने के लिए सकेत करना, तथा घर की रखवाली वगैरह करना, 'सावध क्रिया' दोष है। (५) पालवन-बिना किसी रोग आदि कारण के दीवार आदि का सहारा लेकर बैठना, 'पालबन' दोष है। (६) श्राकुञ्चन-प्रसारण-विना किसी विशेष प्रयोजन के हाथ-पैरो को सिकोडना और फैलाना 'आकुञ्चन-प्रसारण' दोष है। (७) प्रालस्य-सामायिक मे बैठे हुए आलस्य करना, अगडाई लेना 'पालस्य' दोष है। (८) मोडन—सामायिक मे बैठे हुए हाथ-पैर की ऊँगलियाँ चटकाना 'मोडन' दोप है। (९) मल-सामायिक करते समय शरीर पर से मैल उतारना 'मल' दोप है। (१०) विमासन-गाल पर हाथ रखकर शोक-ग्रस्त की तरह बैठना अथवा विना पूजे शरीर खुजलाना या रात्रि मे इधरउधर-आना-जाना 'विमासन' दोष है।
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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