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________________ सामायिक प्रवचन अनादर पूर्वक सामायिक करना, किसी के दबाव या किसी की प्रेरणा से बेगार समझते हुए सामायिक करना 'श्रबहुमान' दोष है । ५० वचन के दस दोष * कुवयण सहसाकारे, सच्छद सखेय कलह च । विगहा विहासोऽमुद्ध, निरवेक्खो मुरणमुरगा दस दोसा ॥ (१) कुवचन - सामायिक मे कुत्सित, गदे वचन बोलना 'कुवचन' दोष है | (२) सहसाकार - विना विचारे सहसा हानिकर, असत्य वचन बोलना 'सहसाकार' दोष है । (३) स्वच्छन्द - सामायिक मे काम वृद्धि करने वाले, गदे गीत गाना 'स्वच्छन्द' दोष है | गदी बाते करना भी इसमे सम्मिलित है । (४) सक्षेप - सामायिक के पाठ को सक्षेप मे बोल जाना, यथार्थ रूप मे न पढना 'संक्षेप' दोष है । (५) कलह - सामायिक में कलह पैदा करने वाले वचन बोलना, 'कलह ' दोष है । (६) विकथा - बिना किसी अच्छे उद्देश्य के व्यर्थ ही मनोरजन की दृष्टि से स्त्री - कथा, भक्त-कथा, राज कथा, देश - कथा आदि करने लग जाना 'विकथा' दोष है । (७) हास्य -- सामायिक मे हँसना, कौतूहल करना एव व्यगपूर्ण शब्द बोलना 'हास्य' दोप है । (८) अशुद्ध-सामायिक का पाठ जल्दी-जल्दी शुद्धि का ध्यान रखे विना बोलना या अशुद्ध बोलना 'अशुद्ध' दोष है । (E) निरपेक्ष- सामायिक में सिद्धान्त की उपेक्षा करके वचन बोलना अथवा विना सावधानी के वचन बोलना 'निरपेक्ष' दोष है । (१०) मुन्मन - सामायिक के पाठ आदि का स्पष्ट उच्चाररण न करना, किन्तु गुनगुनाते हुए वोलना 'मुन्मन' दोष है ।
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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