SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४८ नमोत्युणं = नमस्कार हो अरिहन्ताण = अरिहन्त भगवताणं=भगवान् को शब्दाय = [भगवान कैसे हैं ? ] आइगराण : - धर्म की आदि करने वाले तित्ययराण = धर्म तीर्थ की स्थापना करने वाले - अप्प हिय = अप्रतिहत तथा वर-नाणदंसण = श्र ेष्ठ ज्ञान दर्शन के धराण = धर्ता सामायिक सूत्र विभट्टछउमाण = छद्म से रहित जिणाण = राग द्वेष के विजेता जावयाणं श्रौरो के जिताने वाले तिन्नाणं = स्वयं तरे हुए तारयाण = दूसरो को तारने वाले बुद्धाण = स्वय बोध को प्राप्त सय = स्वय ही संबुद्धाण=सम्यग्बोध को पाने वाले पुरिसुत्तमाणं = पुरुषो मे श्र ेष्ठ पुरिससीहाणं पुरुषो मे सिंह पुरिसवरगंधहत्थीरण = पुरुपो मे श्र ेष्ठ गधहस्ती लोगुत्तमाण= लोक मे उत्तम लोगनाहाण = लोक के नाथ लोगहियाण = लोक के हितकारी लोगपईवाण = लोक मे दीपक लोगपज्जोयगराण= लोक मे उद्योत करने वाले = अभयदयाण - प्रभय देने वाले चक्खुदयारण- नेत्र देने वाले मग्गदयाण == धर्म मार्ग के दाता सरणदयाणं - शरण के दाता जीवदयाण - जीवन के दाता अग्वावाह = बाधा रहित अपुरा वित्ति = पुनरागमन मे रहित (ऐसे ) वोहिदयारणं - बोधि - सम्यक्त्व के दाता सिद्धिगइ = सिद्धि गति वोहयाण = दूसरो को वोध देने वाले मुत्ताण = स्वय मुक्त मोयगाण = दूसरो को मुक्त कराने वाले सव्वन्नूण = सर्वज्ञ सव्वदरिसीण = सर्वदर्शी, तथा सिव = उपद्रवरहित अयल = अचल, स्थिर = रोग रहित अरुय = अरण त ग्रन्त रहित अक्खय = प्रक्षत धम्मदयाण = - धर्म के दाता धम्मदेसयाणं धर्म के उपदेशक धम्मनायगाणं = धर्म के नायक धम्मसारहीण = धर्म के सारथि धम्मवर = धर्म के श्रेष्ठ चाउरंत = चारगति का अन्त करने वाले चक्कवट्टीणं चक्रवर्ती नामधेय = नामक = = प्राप्त करने वाले ठारण = स्थान को संपत्ताण नमो नमस्कार हो जियभयाण = भय के जीतने वाले जिणाण = जिन भगवान् को
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy