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________________ २३० सामायिक-सूत्र मरणेणं-मन से कर्म किया हो, उसका वायाए वचन से पडियकमामिप्रतिक्रमण करता हू काएणं काया से (सावध निदामि आत्म-साक्षी से निन्दा व्यापार) करता हू न करेमि=न स्वय करूँगा गरिहामि आपकी साक्षी से गर्दा न कारवेमिन दूसरो से कराऊँगा करता हूँ भते-हे भगवन् अप्पारण-अपनी आत्मा को तरस अतीत मे जो भी पाप- वोसिरामि=वोसराता हू, त्यागता हूं भावार्थ हे भगवन् | मै सामायिक ग्रहण करता हूँ, पापकारी क्रियाओं का परित्याग करता हूँ। जब तक मैं दो घडी के नियम की उपासना करूं'; तव तक दो करण करना और कराना] और तीन योग से-मन, वचन और शरीर से पाप कर्म न स्वय करूंगा और न दूसरो से कराऊँगा। [जो पाप कर्म पहले हो गए हैं, उनका ] हे भगवन् ! मैं प्रतिक्रमण करता हूँ, अपनी साक्षी से निन्दा करता हूँ, आपकी साक्षी से गर्दा करता हूँ। अन्त मे मैं अपनी आत्मा को पापव्यापार से वोसिराता हू-अलग करता हूँ। अथवा पाप-कर्म करने वाली अपनी भूतकालीन मलिन आत्मा का त्याग करता हू , नया पवित्र जीवन ग्रहण करता हूँ। विवेचन अव तक जो कुछ भी विधि-विधान किया जा रहा था, वह सब सामायिक ग्रहण करने के लिए अपने-आप को तैयार करना था । अतएव ऐर्यापथिकी-सूत्र के द्वारा कृत पापो की आलोचना करने के वाद, तथा कायोत्सर्ग मे एवं खुले रूप मे लोगस्स-सूत्र के द्वारा अन्तर्ह दय की पाप कालिमा धो देने के वाद, सव ओर से विशुद्ध प्रात्म-भूमि मे सामायिक का वीजारोपण, उक्त 'करेमि भते' सूत्र के द्वारा किया जाता है।
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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