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________________ सामायिक में ध्यान ११५ तीन प्रकार के जप जप साधना का विश्लेषण करते हुए आचार्यों ने इसके तीन रूप बताए है-मानस जप, उपाशु जप और भाष्य जप । भाष्यजप-यह साधना की प्राथमिक श्रेणी है । साधक वाणी के द्वारा ध्वनिप्रधान श्रव्य उच्चारण करता हुआ जब स्तोत्र, पाठ, माला आदि का जप करता है, तो वह भाष्य जप है । इस जप मे उच्चरित वाणी दूसरे भी सुन सकते है । वाणी का प्रयत्न अधिक होने के कारण इस जप मे मन की स्थिरता बहुत ही कम रहती है, अत साधक को इससे आगे बढकर दूसरी श्रेणी मे पहुँचने का प्रयत्न करना चाहिए। उपाशु जप-इस जप मे साधक मत्र, स्तोत्र पाठ आदि का बहुत ही धीमे स्वर से उच्चारण करता है। उसकी ध्वनि अन्य व्यक्तियो को सुनाई नही देती, किन्तु उसके अपने कानो तक अवश्य पहुँचती रहती है । शब्द का स्पर्श जीभ और होठ से होता रहता है, अत. वे कुछ-कुछ हिलते भी है। पूर्व के जप की अपेक्षा इसमे वाणी का प्रयत्न मद होता है, अत इसमे पूर्वापेक्षया मानसिक एकाग्रता अधिक प्राप्त की जा सकती है। मानस जप-इस जप मे मत्र आदि के अर्थ का चिन्तन करते हुए केवल मन ही मन मत्र के वर्ण, स्वर व पदो की आवृत्ति की जाती है । मानसिक एकाग्रता की दृष्टि से यह जप सर्वश्रेष्ठ माना गया है। आचार्यों के मतानुसार भाष्यजप से सौ गुना श्रेष्ठ उपाशु जप है और उससे हजार गुना श्रेष्ठ मानस जप है। चतुमुखि जप - - जप पद्धति मे चतुर्मुख जप का भी विशेप महत्त्व है । अन्य प्रकार के शब्द-जप की अपेक्षा इसमे मानसिक एकाग्रता अधिक स्थायी एव दृढ होती है । इस जप मे पद्मासन आदि किसी एक आसन पर बैठ कर ध्यानमुद्रा बनाएँ, दोनो आँखो को हलके से मू द ले और फिर किसी चीजमत्र का जप करे, जैसे कि 'ॐ' या 'अहं' आदि का मन ही मन ध्यान करे । ध्यान का क्रम इस प्रकार है--अन्तर्मन के सकल्प से सर्व
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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