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________________ [ ६८ ] ऐसे तीन प्रकार आत्माके कहनेवाले प्रथम महाधिकारमें जुदे जुदे स्वतंत्र भेद भावनाके स्थल में नौ दोहा-सूत्र कहे । आगे निश्चयकर सम्यग्दृष्टिकी मुख्यतासे स्वतन्त्र एक दोहासूत्र कहते हैं-(आत्मानं) अपनेको (आत्मना) अपनेसे (जानन्) जानता हुआ यह (जीवः) जीव. (सम्यग्दृष्टि:) सम्यग्दृष्टि (भवति) होता है, (सम्यग्दृष्टिः जीवः) और सम्यग्दृष्टि हुआ संता (लघु) जल्दी (कर्मणा) कर्मोसे (मुच्यते) छूट जाता है । . . . भावार्थ-यह आत्मा वीतराग स्वसंवेदनज्ञानमें परिणत हुआ अन्तरात्मा होकर अपनेको अनुभवता हुआ वीतराग सम्यग्दृष्टि होता है, तब सम्यग्दृष्टि होनेके कारणसे ज्ञानावरणादि कर्मोंसे शीघ्र ही छूट जाता है-रहित हो जाता है । यहां जिस हेतु वीतराग सम्यग्दृष्टि होनेसे यह जीव कर्मोसे छूटकर सिद्ध हो जाता है, इसी कारण वीतराग चारित्रके अनुकूल जो शुद्धात्मानुभूतिरूप वीतराग सम्यक्त्व है, वही ध्यावने योग्य है, ऐसा अभिप्राय हुआ । ऐसा ही कथन श्रीकुन्दकुन्दाचार्यने मोक्षपाहुड़ ग्रन्थमें निश्चयसम्यक्त्वके लक्षणमें किया है, "सद्दव्वरओ" इत्यादि-उसका अर्थ यह है कि, आत्मस्वरूपमें मगन हुआ जो यति वह निश्चयकर सम्यग्दृष्टि होता है, फिर वह सम्यग्दृष्टि सम्यक्त्वरूप परिणमता हुआ दुष्ट आठ कर्मोको क्षय करता है ।।७६।। . अथ ऊर्ध्वं मिथ्यादृष्टिलक्षणकथनमुख्यत्वेन सूत्राष्टकं कथ्यते तद्यथा पज्जय-रत्तउ जीवड मिच्छादिट्टि हवेइ ।। .......... * . २.. - बंधइ बहु-विह-कम्मडी जे संसारु भमेइ ॥७७।। .... .. पर्यायरक्तो जीवः मिथ्यांदृष्टिः भवति ।। . बध्नाति बहुविधकर्माणि येन संसारं भ्रमति ।।७।। इसके बाद मिथ्यांदृष्टिके लक्षणके कथनकी मुख्यतासे आठ दोहा कहते हैं(पर्यायरेक्तः जीव:) शरीर आदि पर्यायमें लीन हुआ जो अज्ञानी जीव है, वह (मिथ्यादृष्टिः) मिथ्याहृष्टि (भवति) होता है, और फिर वह (बहुविधकर्माणि) अनेक प्रकारके कर्मोको (बध्नाति) बांधता है, (येन) जिनसे कि (संसार) संसार में (भ्रमति) भ्रमण करता है। ... ...' ___भावार्थ-परमात्माको अनुभूतिरूप श्रद्धासे विमुख जो आठ मद, आठ मल, छह अनायतन, तीन मूढ़ता, इन पच्चीस दोषोंकर. सहित अतत्त्वश्रद्धानरूप मिथ्यात्व
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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