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________________ भावार्थ-यह संसारी-जीव यद्यपि व्यवहारनयकर शुद्धात्मज्ञानके अभावसे उपार्जन किये ज्ञानावरणादि शुभाशुभ कर्मोंके निमित्तसे नर नारकादि पर्यायोंसे उत्पन्न होता है, और विनसता है, और आप भी शुद्धात्मज्ञानसे रहित हुआ कर्मोको उपजाता (बांधता) है, तो भी शुद्धनिश्चयनयकर शक्तिरूप शुद्ध ही है, कर्मोंसे उत्पन्न हुई नर नारकादि पर्यायरूप नहीं होता, और आप भी कर्म नोकर्मादिकको नहीं उपजाता और व्यवहारसे भी न जन्मता है, न किसी से विनाशको प्राप्त होता है, न किसीको उपजाता है, कारणकार्यसे रहित है, अर्थात् कारण उपजानेवालेको कहते हैं । कार्य उपजनेवालेको कहते हैं । सो ये दोनों भाव वस्तू में नहीं हैं, इससे द्रव्याथिकनयकर जीव नित्य है, और पर्यायाथिकनयकर उत्पन्न होता है, तथा विनाशको प्राप्त होता है। यहां पर शिष्य प्रश्न करता है, कि संसारी जीवोंके तो नर नारकी आदि पर्यायोंकी अपेक्षा उत्पत्ति और मरण प्रत्यक्ष दीखता है, परन्तु सिद्धोंके उत्पाद, व्यय, किस तरह हो सकता है ? क्योंकि उनके विभाव-पर्याय नहीं है, स्वभावपर्याय ही है, और वे सदा अखंड अविनश्वर ही हैं। इसका समाधान यह है-कि जैसा उत्पन्न होना, मरना, चारों गतियोंमें संसारीजीवोंके है, वैसा तो उन सिद्धोंके नहीं है, वे अविनाशी हैं, परन्तु शास्त्रों में प्रसिद्ध अगुरुलघु गुणकी परिणतिरूप अर्थपर्याय है, वह समय समयमें आविर्भावतिरोभावरूप होती है। अर्थात् समयमें पूर्वपरिणतिका व्यय होता है और आगेकी पर्यायका आविर्भाव (उत्पाद) होता है । इस अर्थपर्यायकी अपेक्षा उत्पाद व्यय जानना, अन्य संसारी-जीवोंकी तरह नहीं है । सिद्धोंके एक तो अर्थपर्यायकी अपेक्षा उत्पाद व्यय कहा है । अर्थपर्यायमें षट्गुणी हानि और वृद्धि होती है।। अनन्तभागवृद्धि १, असंख्यातभागवृद्धि २, संख्यातभागवृद्धि ३, संख्यातगुणवृद्धि ४, असंख्यातगुणवृद्धि ५, अनन्तगुणवृद्धि ६ । अनन्तभागहानि १, असंख्यातभागहानि २, संख्यातभागहानि ३, संख्यातगुणहानि ४, असंख्यातगुणहानि ५, अनन्तगुणहानि ६ । ये षट्गुणी हानि-वृद्धिके नाम कहे हैं । इनका स्वरूप तो केवलीके गम्य है, सो इस षट्गुणी हानि-वृद्धिकी अपेक्षा सिद्धोंके उत्पाद व्यय कहा जाता है। अथवा समस्त ज्ञेयपदार्थ उत्पाद व्यय ध्रौव्यरूप परिणमते हैं, सो सब पदार्थ सिद्धोंके ज्ञानगोचर हैं । ज्ञेयाकार ज्ञानकी परिणति है, सो जब ज्ञेय-पदार्थ में उत्पाद व्यय हुआ, तब ज्ञानमें सब प्रतिभासित हुआ, इसलिये ज्ञानकी परिणतिकी अपेक्षा उत्पाद व्यय जानना । अथवा जव सिद्ध हुए, तव संसार-पर्यायका विनाश हुआ, सिद्धपर्यायका उत्पाद हुआ,
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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