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________________ १८६ स्वयंभ स्तोत्र टीका। युवान मोर के कण्ठ के नोल रंग के समान नोल रंग से व ( कृतमदनिग्रहविग्रहाभया । कामदेव के मद को जीतने वाले ऐसे परम शांत शरीर को दीप्ति से ( तपसः प्रसूतया । व तप के द्वारा उत्पन्न हुई परम शोभा से ( ग्रहपरिवेषरुचा इव ) पूर्ण चन्द्रमण्डल की चमक के समान ( शोभितं ) शोभायमान होता हुमा। . " भावार्थ-हे मुनिसुव्रतनाथ ! आपके परमौदारिक शरीर की अपूर्व महिमा है । आपके शरीर का वर्ण नील रंग का है, जैसे युवान मोर के कण्ठ का नीला रंग होता है । आपने कामभाव को जीत लिया है इसलिये आपके शरीर में ब्रह्मचर्यपने की परम शान्त निविकार आभा चमक रही है। आपने जो परम शुक्लध्यान तप किया उसके प्रभाव से आपके शरीर में सात धातु न रहीं। आपका शरीर स्फटिक के समान निर्मल होगया। आपका शरीर ऐसा चमक रहा है जैसा पूर्णमासी का चन्द्रमा का मण्डल शोभता है । प्राप्तस्वरूप में कहा है सर्वलक्षणसम्पूर्ण निर्मले मणिदर्पणे । संक्रांतिबिम्बसादृश्यं शांत संचेतयेऽद्भुत ॥६॥ भावार्थ--श्री अरहन्त का शरीर सर्व लक्षणों से पूर्ण परम शांत अद्भुत ऐसा शोभता है जैसे निर्मल मरिण के दर्पण में उकेरी हुई शांति मूर्ति हो । वास्तव में अरहंत के शारीर की महिमा वचन अगोचर है । मृग्विणी छन्द मोर के कण्ठ सम नील रङ्ग रङ्ग है, काममद जीतकर शांतिमय अङ्ग है । नाथ तेरी तपस्या जनित अङ्ग नो, शोभता चन्द्रमण्डल मई रङ्ग जो ।। ११३ ।। उत्थानिका-फिर भी शरीर की शोभा को कहते हैं--- शशिरुचिशुचिशुक्ललोहितं सुरभितरं विरजो निजं वपुः । तव शिवमतिविस्मयं यते! यदपि च वांगमनसोऽयमीहितम् ॥११३॥ अन्वयार्थ-( यते । है साधु ! ( तव निजं वपुः । श्रापका अपना शरीर ( शशि- ) चिचि ) चन्द्रमा की दीप्ति के समान निर्मल है ( शुक्ललोहितं ) उसमें सफेद रंग का लोह था ( सुरभितरं ) बहुत ही सुगन्धित है । विरजः ) कोई धूल व मैल से संयुक्त नहीं
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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