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________________ श्री श्रेयांश जिन स्तुति 8 से होगा। वह सम्यग्ज्ञान निर्मल श्रुत अर्थात् शास्त्र से होगा। शास्त्र का यथार्थ प्रकाश प्राप्त से होगा। प्राप्त दोष रहित होना चाहिये । वे दोष जगत में राग द्वष मोहादिक कहे गये हैं। ऐसा जानकर जो पुरुषार्थी व अप्रमादी जीव हैं उनको उचित है कि वे सर्व दुःखों से रहित मुक्ति की प्राप्ति के लिये रागादि दोष सहित देवों का प्राश्रय न करें किन्तु वीतरागी प्रभु का ही शरण लेवें। शृश्विणी छन्द प्राप ही श्रेष्ठ ज्ञानी महा हो सुखी, मापसे बो परे बुद्धि लव मद दुःखी । माहिते मोक्ष की भावना जे करें, संतजन नाथ शीतन तुम्हें उर घरें ।।५।। (११) श्री श्रेयांशजिन स्तुतिः । श्रेयान् जिलः श्रेयसि वर्मनीमाः, श्रेयः प्रजाः शासदजेयवाक्यः । • भवांश्चकाशे भवनत्रयेऽस्मिन्नेको यथा वीतघनो विवस्वान् ।५१। ... अन्वयार्थः- ( भवान् ) आप ( श्रेयान् जिनः ) श्रेयांसनाथ जिनेन्द्र ( अजेयवाक्यः) माधा रहित व प्रमाणीक तथा माननीय ध्वनि को प्रकाश करने वाले हैं। आप ( इमाः प्रजाः ) इन अन्य जीवों को [ श्रेयसि वर्ल्स नि ] मोक्ष मार्ग में ( श्रेयः ) कल्याणमय धर्म को (शासत्) उपदेश करते हुए (अस्मित् भुवन त्रये) इस तील लोक में (एकः) एक 'अपूर्व ही ( चकासे ) शोभते हुए ( यथा ) जिस तरह ( वीतघनाः ) बादलों से रहित (विवस्वान्) सूर्य विश्व में एक अद्भुत रूप से प्रकाशित होता है। भावार्थ यहाँ श्री श्रेयांसनाष की स्तुति करते हुये उनके नाम के अनुसार ही गुणों का वर्णन कर रहे हैं । प्रभु ने विषय कषाय व कर्म सब जीत लिये, इससे जिन नाम सार्थक किया तथा अपने आपको परमात्मपद में स्थापित फरके अपना परम कल्याण किया, इससे श्रेय नाम को स्थापित किया । इतना ही नहीं, आपने जगत के भव्य प्राणियों को जो प्रापके सनबसरण की शरण में माये ऐसा कल्याणकारी मोक्ष मार्ग का उपदेश दिया जिससे वे सी उस पर बाधा रहित चलकर परमात्म पद को प्राप्त कर सके।
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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