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________________ श्री पुष्पदन्त जिन स्तुति पद्धरी छन्द है प्रस्ति कथंचित् श्रौर नास्ति, भगवन तुझ मत में यह तथास्ति । सत् श्रसत्मई भेदरू प्रभेद, हैं वस्तु बीच नहि शून्य वेद ||४२ || ८५ उत्थानिका --- इस तरह भाव रूप प्रभाव स्वरूप होने से तत्त्व उस रूप है भी और . उस स्वरूप नहीं भी है ऐसा दिखाकर अब कहते हैं कि नित्य व ग्रनित्यपने को दृष्टि से भी तत्त्व तत् तत् स्वभाव है- नित्यं तदेवेदमिति प्रतीतेर्न नित्यमन्यत्प्रतिपत्तिसिद्धः । न तद्विरुद्ध बहिरन्तरं गनिमित्तनैमित्तकयोगतस्ते ॥ ४३ ॥ श्रन्वयार्थ - ( नित्यं ) जीवादि वस्तु नित्य है, अविनाशी है ऐसी ( तदेव इति प्रतीतेः) प्रतीति इसीलिये होती है कि यह वही है जो पहले थी । यह देवदत्त वही है जो पहले बालक था ( न नित्यं ) वही वस्तु नित्य नहीं है, क्षणिक है ( ग्रन्यत् प्रतिपत्तिसिद्ध : ) यह बात इसलिए सिद्ध है कि यह अन्य है ऐसी भी प्रतीति होती है । यह देवदत्त प्रब युवान है पहले बालक था । बाल्यावस्था इसकी नष्ट होगई । तब आपके मत में [ तद् विरुद्धं न ] एक ही वस्तु को एक ही काल में नित्य व प्रनित्य कहना किसी तरह विरोध रूप नहीं है [ बहिः प्रतरङ्गनिमित्तनैमित्त योगतः ] बाहरी कारण जो निमित्त कारण और अंतरंग कारण जो उपादान कारण इसके अनुसार ही जगत में कार्य होता है उससे ऐसा ही सिद्ध होता है। भावार्थ- -अब बताते हैं कि जैसे यह जीव व प्रजीव कोई भी वस्तु हो वह अपने स्वरूपादि की अपेक्षा प्रस्तिरूप है पर स्वरूपादि की अपेक्षा नास्तिरूप है, वैसे ही वह द्रव्य की दृष्टि से नित्य स्वरूप है तथा पर्याय पलटने की अपेक्षा अनित्य स्वरूप है । नित्य व प्रनित्य दोनों ही स्वभाव वस्तु में हर समय पाये जाते हैं। ऐसा न हो तो कोई वस्तु जगत में रहती हुई कोई काम की नहीं हो सकती है। जैसे सुवर की मुद्रिका बनाई फिर तोड़कर कुण्डल बनवाया, फिर तोड़कर बाली बनवाई, फिर तोड़कर कण्ठी बनवाई, फिर तोड़कर कड़ा बनवाया । ऐसे उस एक ही सोने की भिन्न २ अवस्था हुई व नाश हुईं । परन्तु सोना जो मूल द्रव्य था वह नाश नहीं हुआ । यह बराबर प्रतीति में श्रा रहा है कि वही सोना है जो पहले मुद्रिका की अवस्था में था । यह प्रत्यभिज्ञान नाम का मतिज्ञान
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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